दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र August 30, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ अथ दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र ॥ मन्त्र – गं क्षिप्रप्रसादनाय नमः । क्षिप्र प्रसाद गणपति का पूजन श्रीविद्या ललिता सुन्दरी उपासना में मुख्य है । इनके बिना श्री विद्या अधूरी है। जो साधक श्री साधना करते हैं उन्हें सर्वप्रथम इनकी साधना कर इन्हें प्रसन्न करना चाहिए। कामदेव की भस्म से उत्पन्न दैत्य से श्री ललितादेवी के युद्ध के समय देवी एवं सेना के सम्मोहित होने पर इन्होंने ही उसका वध किया था। इनकी उपासना से विघ्न, आलस्य, कलह़, दुर्भाग्य दूर होकर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। विनियोगः- ॐ अस्य श्री क्षिप्र प्रसाद गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः । विराट् छन्दः, क्षिप्र प्रसादनाय देवता, गं बीजं, आं शक्तिं, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । करन्यास अंग न्यास ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नमः । हृदयाय नमः । ॐ गं तर्जनीभ्यां नमः । शिरसे स्वाहा । ॐ गं मध्यमाभ्यां नमः । शिखायै वषट् । ॐ गं अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुम् । ॐ गं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । नैत्रत्रयाय वौषट् । ॐ गं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अस्त्राय फट् । ध्यानम् पाशांकुशौ कल्पलतां विषाणं दधत् स्वशुण्डाहित बीजपूरः । रक्तस्त्रिनेत्रस्तरुणेन्दु मौलिर्हारोज्ज्वलो हस्तिमुखोऽवताद् वः ॥ रक्त वर्ण, पाश, अंकुश, कल्पलता हाथ में लिए वरमुद्रा देते हुए, शुण्डाग्र में बीजापुर लिए हुए, तीन नेत्र वाले, उज्ज्वल हार इत्यादि आभूषणों से सज्जित, हस्ति मुख गणेश का मैं ध्यान करता हूं। यंत्रार्चनम् :- यंत्र देवता वक्रतुण्ड गणेश के ही है, प्रथमावरणम् – षट्कोण में हृदयशक्ति, शिरशक्ति, शिखाशक्ति, कवचशक्ति, नेत्रशक्ति एवं अस्त्रशक्ति का पूजन करें । द्वितीयावरणम् – अष्ट दलों में निम्न (क्षिप्रप्रसाद स्वरूपों का पूजन करे – ॐ विघ्नाय नमः ॥ १ ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ २ ॥ ॐ शूराय नमः ॥ ३ ॥ ॐ वीराय नमः ॥ ४ ॥ ॐ वरदाय नमः ॥ ५ ॥ ॐ इभक्त्राय नमः ॥ ६ ॥ ॐ एकरदाय नमः ॥ ७ ॥ ॐ लंबोदराय नमः ॥ ८ ॥ तृतीय व चतुर्थावरण में इसके बाद भूपूर में इन्द्रादि लोकपालों व आयुधों की पूर्व यंत्रार्चन विधि अनुसार करें । चार लाख जप कर, चालीस हजार आहुति मोदक से तथा नित्य चार सौ चवालीस (444) तर्पण करने से अपार धन-संपत्ति प्राप्त होती है । तर्पण में नारियल का जल या गुड़ोदक प्रयोग कर सकते हैं । त्रिकाल (सुबह-दोपहर-संध्या) को जप का विशेष महत्व है । अंगुष्ठ बराबर प्रतिमा बनाकर श्री क्षिप्रप्रसाद गणेश यंत्र के ऊपर स्थापित कर पूजन करें । श्री गणेश शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं । ADD ameya jaywant narvekar
श्रीबटुक-भैरव-साधना श्रीबटुक-भैरव-साधना विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबटुक-भैरव-त्रिंशदक्षर-मन्त्रस्य श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता, ‘ह्रीं’ बीजं, भैरवी-वल्लभ शक्तिः, दण्ड-पाणि कीलकं, मम समस्त-शत्रु-दमने, समस्तापन्निवारणे, सर्वाभीष्ट-प्रदाने वा जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवतायै नमः हृदि, ‘ह्रीं’ बीजाय नमः गुह्ये, भैरवी-वल्लभ शक्तये नमः नाभौ, दण्ड-पाणि कीलकाय नमः पादयो, मम… Read More आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग “भैरव-तन्त्र” के अनुसार आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं – १॰ रात्रि में तीन मास तक प्रति-दिन ३८ पाठ करने से (कुल ११४० पाठ) विद्या और धन की प्राप्ति होती है। २॰ तीन मास तक रात्रि में नौ अथवा बारह पाठ प्रति-दिन करने से ‘इष्ट-सिद्धि’ प्राप्त होती है ।… Read More श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र ॐ गुरोः सेवां त्यक्त्वा गुरुवचन-शक्तोपि न भवे भवत्पूजा-ध्यानाज्जप 1 हवन-यागा 2 द्विरहितः । त्वदर्च-निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं व कृतवान् जगज्जाल-ग्रसतो झटिति कुरु हार्दं मयि विभो ।।१ प्रभो ! दुर्गासूनो ! तव शरणतां सोऽधिगतवान् कृपालो ! दुःखार्तः कमपि भवदन्यं प्रकथये । सुहृत् 3 ! सम्पत्तेऽहं सरल 4-विरलः 5 साधकजन स्त्वदन्यः 6 कस्त्राता भव-दहन-दाहं शमयति ।।२… Read More गो-मय गणपति उपासना गो-मय गणपति उपासना ‘गो-मय गणपति उपासना’– २१ दिनों की अति-प्रभावी उपासना है। यह उपासना किसी भी मास की शुक्ल चतुर्थी या शुभ दिन से प्रारम्भ की जा सकती है। संकल्पः- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्यि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे आर्यावर्त्त-देशे अमुक पुण्य-क्षेत्रे कलि-युगे कलि-प्रथम-चरणे ‘अमुक’-नाम संवत्सरे भाद्रपद-मासे शुक्ल-पक्षे चतुर्थी-तिथौ अमुक-वासरे अमुक-गोत्रोत्पन्नो अमुक नाम-शर्मा-वर्मा-दास गणपति-देवता -प्रीति-पूर्वक त्वरित… Read More श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु (१) ‘संकष्टी-चतुर्थी’ को उपासना प्रारम्भ करे। स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रीगणेश जी के सामने बैठे। तथा-शक्ति ‘पूजन’ करे। ‘पूजा’ में रक्त अक्षत्, रक्त पुष्प, शमी-पत्र तथा दूर्वा चढ़ाए। फिर, हृदय में ‘श्रीगणेश’ का ‘ध्यान’ करे- “श्वेताभं शशि-शेखरं त्रिनयनं श्वेताम्बरालंकृतं। श्रीवाणी-सहितं रमेश-वरदं पीयूष-मूर्ति प्रभुम्।। पीयूषं निज-बाहुभिश्चदधतं पाशांकुशौ मुद्-गरं। नागास्यं सततं सुरैश्च… Read More श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु (१) श्रीसुधा-गणेश-साधनाः- यह एक निश्चित फल-प्रद साधना है। इसके लिए पहले दूर्वा (दूब) ले आए। दूर्वा तोड़ते समय निम्न मन्त्र पढ़ें- “दूर्वे अमृत-सम्पन्ने, शत-मूले शतांकुरे ! क्षमस्वोत्पाटनं देवि ! महद्दोषोऽत्र विद्यते।।” पूजन-सामग्री एकत्र करने के बाद स्वच्छ होकर भगवान् श्रीगणेश का यथा-शक्ति पूजन करे। पूजन के बाद निम्न-लिखित मन्त्र का जप करे। यथा-… Read More भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ (१) श्री सिद्ध-विनायक-व्रत ‘श्री सिद्ध-विनायक-व्रत’ भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को करे। पहले निम्न-लिखित मन्त्र का १००० या अधिक ‘जप’ करे। यथा- “सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवन्ता हतः। सुकुमार कामरोदीस्तव ह्येषः स्यमन्तकः।।” फिर श्री गणेश जी का षोडशोपचार पूजन कर, २१ मोदकों का नैवेद्य रखे। तब २१ दूर्वा लेकर उन्हें गन्ध-युक्त करे और… Read More श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ‘कलौ चण्डी-विनायकौ’– कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी ameya jaywant narvekar
Category: साधन-माला पितृसूक्त अभीष्ट फलदायक बाह्य शान्ति सूक्त भगवान् श्रीकृष्ण से सर्वमनोकामना पूर्ति हेतु सरल अनुष्ठान श्रीराधाजी का आश्रय एवं लौकिक समृद्धि पाने हेतु सरल अनुष्ठान भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये सरल अनुष्ठान श्रीराधा-माधवप्रेमकी प्राप्तिके लिये लौकिक सरल अनुष्ठान रक्षा बन्धन विधि श्रीनृसिंह पूजन विधि शत्रुबाधा निवारण हेतु नृसिंह कवच प्रयोग जानकी नवमी से करें शीघ्र विवाह हेतु जानकी मंगल प्रयोग महर्षि आश्वलायन-कृत माँ सरस्वती का विशिष्ट पाठ श्रीपञ्चमी-वसन्तपञ्चमी श्रीआकाशभैरव चित्रमाला मंत्र शरभ मालामन्त्रम् देवी-देवताओं के गायत्री मन्त्र श्रीनाथादि गुरुत्रयं मण्डल पूजन प्रयोगः हनुमान जी का वीर-साधन-प्रयोग श्रीगायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति श्री परशुराम प्रयोग धन-तेरस पर धनदायक प्रयोग भगवान् धन्वन्तरि अष्टोत्तर-शत-नामावली शनि-पीड़ा के लिए प्रभाव-पूर्ण उपासनाएँ शनि-साढ़ेसाती के शांति उपाय विशेष कड़ाही पूजा श्रीदुर्गा-अष्टोत्तर-शत-नाम-साधना श्रीदुर्गे स्मृतेति – मन्त्र की साधना कुमारी पूजा सर्वोपयोगी अनुभूत साधना अमोघ लघु प्रयोग महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग त्रि-विध-सिद्धि-प्रद मन्त्र तन्त्रोक्त कवच संस्कार ग्रह-बाधा, ज्वर-नाशक विघ्नेश-मन्त्र श्रीसंग्राम-विजया विद्या सर्प-भय-निवारण के प्रयोग सिद्ध लक्ष्मी-प्रार्थना भगवान् श्रीकृष्ण की साधना धनाधीश कुबेर यन्त्र धनाधीश कुबेर के मन्त्र दारिद्र्य-दहन-विधि सर्व-कार्य-सिद्धि के लिये रोग, उपद्रव की शान्ति हेतु सप्तशती-प्रयोग रोग नाशक देवी मन्त्र श्रीसूक्तः साधना के आयाम श्रीसूक्त के प्रयोग श्रीसूक्त-विधान सुन्दर काण्ड का अद्भुत अनुष्ठान ऋण-मुक्ति श्रीभैरव-मन्त्र ऋण-मोचन महा-गणपति-स्तोत्र ऋण-हरण श्री गणेश-मन्त्र प्रयोग विविध फल-दायिनी श्रीचित्रसेन-साधना दुःस्वप्न-नाशक प्रयोग लक्ष्मी – नाम मन्त्र द्वारा हवन श्री महा-नवार्ण-मन्त्र साधन-विधि माता महा-लक्ष्मी की अनुभूत साधना / मन्त्र नवनाथ वन्दनाष्टकम् नव-नाथ साम्प्रदायिक पूजा-विधान बन्दी-मोचन-मन्त्र-प्रयोग कार्तवीर्यार्जुन-माला-मन्त्र कामाख्या-मन्त्र-प्रयोग भगवान् श्रीकृष्णोपासना कलश एवं जयन्ती का माहात्म्य कार्तवीर्यार्जुन दर्पण-प्रयोग कार्तवीर्यार्जुन मन्त्र-प्रयोग क्लीं-बीज का अनुभूत प्रयोग सर्व-संकट-हारी-प्रयोग विद्या-प्राप्ति-प्रयोग सर्वाभीष्टप्रद-प्रयोग श्रीगिरिजा दशक: एक सिद्ध प्रयोग शान्ति मन्त्र श्रीकृष्ण कीलक भाग्योदय हेतु श्रीमहा-लक्ष्मी-साधना सुख-शान्ति-दायक महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग सर्व-संकटहारी-प्रयोग हनुमान लहरी परीक्षा में सफलता, स्मरण-शक्ति-वर्द्धन प्रयोग आत्म-ज्योति-साधना विपत्तिनाश, सम्पदा-प्राप्ति, साधन-सिद्धि कन्या विवाह हेतु प्रार्थना सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र त्रिकाल-दर्शक गौरी-शिव मन्त्र विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम् शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र कुंजिका स्तोत्र और ‘बीसा यन्त्र’ का अनुभूत अनुष्ठान शत्रु-विनाशक आदित्य-हृदय चक्षुष्मती विद्या हनुमत साठिका संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् हनुमान् वडवानल स्तोत्र हनुमान जी के संकट-नाशक अनुष्ठान सर्व सिद्धिदायक हनुमान मन्त्र हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र-प्रयोग आञ्जनेयास्त्रम् मनोवांछित वर-प्राप्ति प्रयोग दरिद्रता-नाशक तथा धन-सम्पत्ति-दायक स्तोत्र शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग महाकवि श्रीहर्ष और चिन्तामणि मन्त्र अर्द्ध-नारीश्वर-चिन्तामणि-मन्त्र-साधना रोग एवं अपमृत्यु-निवारक प्रयोग श्रीबटुक-भैरव-मन्त्र-जप-विधि श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् गन्धर्व-राज विश्वावसु श्रीबटुक-भैरव-साधना आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र गो-मय गणपति उपासना श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ameya jaywant narvekar
शनि मृत्युंजय स्तोत्र महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्री महाकाल शनि मृत्युञ्जय स्तोत्र मन्त्रस्य पिप्लाद ऋषिरनुष्टुप्छन्दो महाकाल शनिर्देवता शं बीजं मायसी शक्तिः काल पुरुषायेति कीलकं मम अकाल अपमृत्यु निवारणार्थे पाठे विनियोगः। श्री गणेशाय नमः। ॐ महाकाल शनि मृत्युञ्जायाय नमः। नीलाद्रीशोभाञ्चितदिव्यमूर्तिः खड्गो त्रिदण्डी शरचापहस्तः । शम्भुर्महाकालशनिः पुरारिर्जयत्यशेषासुरनाशकारी ।।१ मेरुपृष्ठे समासीनं सामरस्ये स्थितं शिवम् । प्रणम्य शिरसा गौरी… Read More संसार-मोहक नाम श्रीगणेश-कवचम् संसार-मोहक नाम श्रीगणेश-कवचम् ।।पूर्व-पीठिकाः श्री नारायण उवाच।। विनायकस्य कवचं, सर्वापद्-विनिवारकम्। कथयामि महालक्ष्मी ! सर्व-लोकेषु शान्ति-कृत्।।१ कवचं विभ्रतां मृत्युर्न भिया याति सन्निधिम्। नाऽऽयुर्व्ययो नाशुभं च, ब्रह्माण्डे न पराजयः।।२… Read More विश्वविजय सरस्वती कवच विश्वविजय सरस्वती कवच श्रीब्रह्मवैवर्त-पुराण के प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४ में मुनिवर भगवान् नारायण ने मुनिवर नारदजी को बतलाया कि ‘विप्रेन्द्र ! सरस्वती का कवच विश्व पर विजय प्राप्त कराने वाला है। जगत्स्त्रष्टा ब्रह्मा ने गन्धमादन पर्वत पर भृगु के आग्रह से इसे इन्हें बताया था।’ ॥ ध्यान ॥ सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् । कोटिचन्द्रप्रभाजुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम् ॥ वह्निशुद्धांशुकाधानां… Read More ameya jaywant narvekar सरस्वती महा-स्तोत्र सरस्वती महा-स्तोत्र प्रस्तुत ‘सरस्वती महा-स्तोत्र’ का एक वर्ष तक पाठ करने से मूर्ख व्यक्ति की भी मूर्खता दूर हो जाती है । नित्य-पाठ करने से पाठ-कर्त्ता मेधावी हो जाता है । यह महर्षि याज्ञवल्क्य का अनुभूत प्रयोग है । ॥ याज्ञवल्क्य कृत सकल-कामना-दायक सरस्वती स्तोत्रम् ॥ ॥ याज्ञवल्क्य उवाच ॥ कृपां कुरु जगन्मातर्मामेवं हततेजसम् ।… Read More शनैश्चरं प्रति विष्णुनोपदिष्टं गणेशकवचम् ॥ शनैश्चरं प्रति विष्णुनोपदिष्टं संसार-मोहन-गणेश-कवचम् ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्री गणेश कवच मंत्रस्य, प्रजापतिः ऋषिः, वृहती छन्दः , श्रीगजमुख विनायको देवता, गं बीजं, गीं शक्तिः, गः कीलकम्, धर्मकामार्थमोक्षेषु, श्री गणपति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ विष्णुरुवाच ॥ संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदरः स्वयम् ॥ १ ॥ धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः । सर्वेषां कवचानां… Read More सर्व-यंत्र-मन्त्र-तंत्रोत्कीलन-स्तोत्र सर्व-यंत्र-मन्त्र-तंत्रोत्कीलन-स्तोत्र ।। पार्वत्युवाच ।। देवेश परमानन्द, भक्तानाम भयं प्रद ! आगमाः निगमाश्चैव, बीजं बीजोदयस्तथा ।।१।। समुदायेन बीजानां, मन्त्रो मंत्रस्य संहिता । ऋषिच्छन्दादिकं भेदो, वैदिकं यामलादिकम् ।।२।।
श्री महालक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्रम् || श्री महालक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्रम् || श्रीः पद्मा प्रकृतिः सत्त्वा शान्ता चिच्छक्तिरव्यया | केवला निष्कला शुद्धा व्यापिनी व्योमविग्रहा || १|| व्योमपद्मकृताधारा परा व्योमामृतोद्भवा | निर्व्योमा व्योममध्यस्था पञ्चव्योमपदाश्रिता || २||… Read More श्रीबगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् श्रीबगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।। श्रीनारद उवाच ।। भगवन्, देव-देवेश ! सृष्टि-स्थिति-लयात्मकम् । शतमष्टोत्तरं नाम्नां, बगलाया वदाधुना ।।… Read More ब्रह्मास्त्र महा विद्या श्रीबगला स्तोत्र ब्रह्मास्त्र महा विद्या श्रीबगला स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्रीब्रह्मास्त्र-महा-विद्या-श्रीबगला-मुखी स्तोत्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, ‘ह्ल्रीं’ बीजं, ‘स्वाहा’ शक्तिः, ‘बगला-मुखि’ कीलकं, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-गतीनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं पाठे विनियोगः ।… Read More बगलामुखी कवचम् बगलामुखी कवचम् (रुद्रयामले) ।। श्री भैरवी उवाच ।। श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर । इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ।। १ ।। वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाऽशुभविनाशनम् । शुभदं स्मरणात् पुण्यं त्राहि मां दुःखनाशन ।। २ ।।… Read More श्री ब्रह्मास्त्र बगला वज्र कवचम् श्री ब्रह्मास्त्र बगला वज्र कवचम् ।। श्री ब्रह्मोवाच ।। विश्वेश दक्षिणामूर्ते निगमागमवित् प्रभो । मह्यं पुरा त्वया दत्ता विद्या ब्रह्मास्त्रसंज्ञिता ।। १ तस्य मे कवचं बूहि येनाहं सिद्धिमाप्नुयात् । भवामि वज्रकवचं ब्रह्मास्त्रन्यासमात्रतः ।। २… Read More बगलामुखी ब्रह्मास्त्र कवचम् बगलामुखी ब्रह्मास्त्र कवचम् इस कवच में प्रयुक्त मंत्र के जप एवं सम्पुटित दुर्गा पाठ कराने पर शत्रुनाश, प्रेतदोषशमन, आर्थिक उन्नति आदि के सफल प्रयोग किये जा सकते हैं । षट्त्रिंशतात्मक (३६ अक्षर) मंत्र के विकल्प में इस मंत्र में मंत्रोच्चारण या ध्यान समय त्रुटि की सम्भावना भी नहीं रहती है ।… Read More श्री बगला यंत्रराज रक्षा स्तोत्रम् श्री बगला यंत्रराज रक्षा स्तोत्रम् इस स्तोत्र में बगला मंत्र ऋषि नारद, छंद पंक्ति, देवता पीताम्बरा, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्ति, सं कीलक, शत्रु-विनाशक विनियोग कहा गया है तथा इस स्तोत्र के पाठ से यंत्रार्चन का फल प्राप्त होता है ।… Read More श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम् श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम् ।। श्री शिव उवाच ।। अधुनाऽहं प्रवक्ष्यामि बगलायाः सुदुर्लभम् । यस्य पठन मात्रेण पवनोपि स्थिरायते ।। प्रत्यंगिरां तां ameya jaywant narvekar देवेशि श्रृणुष्व कमलानने । यस्य स्मरण मात्रेण शत्रवो विलयं गताः ।।… Read More श्रीबगला पञ्जर स्तोत्र श्रीबगला पञ्जर स्तोत्र (यह स्तोत्र शेवागम-सारोक्त है । इसी स्तोत्र के उपयोग से मथुरा (उ॰प्र॰) के प्रख्यात स्व॰ विष्णु भट्ट अथर्ववेदी ने विपुल यशार्जन किया था) इस स्तोत्र के सहस्र (एक हजार) पाठ सिद्धि-प्राप्ति के लिए पहले करने चाहिए । फिर सौ पाठ अनुष्ठान कार्य-सिद्धि के लिए करना चाहिए । नित्य कर्म करके स्व-शरीर-रक्षार्थ इस… Read More श्रीबगलामुखी हृदय स्तोत्रम् श्रीबगलामुखी हृदय स्तोत्रम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगला-मुखी हृदयमालामन्त्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, ‘ह्लीं’ बीजं, ‘क्लीं’ शक्तिः, ‘ऐं’ कीलकं, श्रीबगला-मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीनारद ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्री बगला-मुखी देवतायै नमः हृदि, ‘ह्लीं’ बीजाय नमः गुह्ये, ‘क्लीं’ शक्त्यै नमः नाभौ, ‘ऐं’ कीलकाय नमः पादयोः, श्रीबगला-मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थे जपे… Read More
शरभहृदय स्तोत्रम् ॥ शरभहृदय स्तोत्रम् ॥ किसी भी देवता का हृदय मित्र के समान कार्य करता है, शतनाम अंगरक्षक के समान एवं सहस्रनाम सेना के समान रखा करता है अत: इनका अलग-अलग महत्व है । भूमिका के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय विष्णु ने शरभ हृदय की २१ आवृति ३ मास तक की तब शरभराज प्रकट ने… Read More प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ ॥ ॐ नमः श्री कालसंकर्षिण्यै ॥ ॥ भगवान शिव उवाच ॥ एँ ख्फ्रें नमोऽस्तु ते महामाये देहातीते निरञ्जने । प्रत्यंगिरा जगद्धात्रि राजलक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥ वर्ण देहा महागौरी साधकेच्छा प्रवर्तते । पददेहामहास्फार परासिद्धि समुत्थिता ॥ तत्त्वदेहास्थिता देवि साधकान् ग्रहा स्मृता । महाकुण्डलिनी प्रोक्ता सहस्रदलस्य च भेदिनी ॥… Read More कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ Pratyangira Mala Mantra ॥ ॐ नमः शिवाये ॥ ॥ श्री भैरव उवाच ॥ ” निवसति करवीरे सर्वदाया श्मशाने विनत-जन हिताय प्रेत-रूढे महेशो हि मकर हिम-शुभ्रां पञ्च-वक्त्राम्-माद्यांदिशतु-दश-भुजाया सा श्रियं सिद्धि-लक्ष्मीः ॥ ऐं ख्फ्रे जय जय जगदम्ब प्रणत-हरिहर हिरण्य-गर्भ ।… Read More ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ इस स्तव में श्लोक ४, ५, ८, १०, ११, २५, २६ में अन्य मंत्रों के प्रयोग हैं। विनियोगः- “ॐ अस्य श्री गायत्री स्तवराज मन्त्रस्य श्रीविश्वामित्रः ऋषिः सकल जननी चतुष्पदा गायत्री परमात्मा देवता। सर्वोत्कृष्टं परम धाम तत्-सवितुर्वरेण्यं बीजं भर्गो देवस्य धीमहि शक्तिः। धियो यो नः प्रचोदयात् कीलकं। ॐ भूः ॐ भुव ॐ… Read More श्रीगायत्री सहस्रनामस्तोत्रम् एवं नामावली श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम् श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्रीगायत्री अष्टोत्तर सहस्रनाम स्तोत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीदेवी गायत्री देवता हलो बीजानि स्वराः शक्त्यः सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- श्रीब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । श्रीदेवी गायत्र्यै नमः हृदि । हल्भ्यो बीजेभ्यो नमः गुह्ये । स्वरेभ्यः शक्तिभ्यः नमः पादयोः ।… Read More ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ नमस्कृत्य भगवान् याज्ञवल्क्यः स्वयं परिपृच्छति- त्वं ब्रूहि भगवन् ! गायत्र्या उत्पत्तिं श्रोतुमिच्छामि ॥ १ ॥ ब्रह्मोवाच – प्रणवेन व्याहृतयः प्रवर्तन्ते । तमसस्तु परं ज्योतिः कः पुरुषः स्वयम्भूर्विष्णुरिति हताः स्वाङ्गुल्याः मथयेत् पाठान्तर – … ameya jaywant narvekar Read More ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ अथ श्रीमद्देवीभागवते महापुराणे गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ नारद उवाच ॥ भगवन् देवदेवेश भूतभव्य जगत्प्रभो । कवचं च श्रृतं दिव्यं गायत्रीमन्त्रविग्रहम् ॥ १ ॥ अधुना श्रोतुमिच्छामि गायत्रीहृदयं परम् । यद्धारणाद्भवेत्पुण्यं गायत्रीजपतोऽखिलम् ॥ २ ॥ ॥ श्रीनारायण उवाच ॥ देव्याश्च हृदयं प्रोक्तं नारदाथर्वणे स्फुटम् । तदेवाहं प्रवक्ष्यामि रहस्यातिरहस्यकम् ॥ ३ ॥ विराड्रूपां महादेवीं गायत्रीं… Read More ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्र (Gayatri Panjara Stotram) को नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है गायत्री पञ्जर स्तोत्र पढ़ने से साधना में सफ़लता, अपने शरीर की रक्षा कवच का कार्य करता हैं ! पीपल की छाया (पीपल मूल) में जप करने से राजा का वशीकरण, बिल्व मूल… Read More कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) ।। ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है। तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनी-हदय-दीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्… Read More मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ देव देव महादेव! संसारार्णव तारक ! गायत्री कवचं देव ! कृपया कथय प्रभो । ॥ महादेव उवाच ॥ मूलाधारेषु या नित्या कुण्डली तत्त्व-रूपिणी । सूक्ष्माति सूक्ष्मा परमा विसतन्तु-स्वरूपिणी ॥ विद्युत-पुञ्ज-प्रतीकाशा कुण्डलाकृति-रूपिणी । परम-ब्रह्म गृहिणी पञ्चाशद् वर्ण-रूपिणी ॥ शिवस्य नर्तकी नित्या परम् ब्रह्म-पूजिता । ब्रह्मणः सैव गायत्री सच्चिदानन्दरूपिणी ॥ तद् भ्रमावर्त्तवातोऽयं… Read More
श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रम् ॥ श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रम् ॥ ॥ देव्युवाच ॥ त्वत्तः श्रुतं मया नाथ देव देव जगत्पते । देव्याः कामकलाकाल्या विधानं सिद्धिदायकम् ॥ १ ॥ त्रैलोक्यविजयस्यापि विशेषेण श्रुतो मया । तत्प्रसङ्गेन चान्यासां मन्त्रध्याने तथा श्रुते ॥ २ ॥ इदानीं जायते नाथ शुश्रुषा मम भूयसी । नाम्नां सहस्रे त्रिविधमहापापौघहारिणि ॥ ३ ॥ श्रुतेन येन देवेश धन्या स्यां भाग्यवत्यपि ।… Read More “ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा” श्रीराधा-उपासना – देवी भागवत अनुसार ॥ ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा ॥ श्रीराधा-उपासना – देवी भागवत अनुसार भगवान् नारायण कहते हैं — नारद ! सुनो, यह वेदवर्णित रहस्य तुम्हें बताता हूँ । यह सर्वोत्तम एवं परात्पर साररहस्य जिस किसी के सम्मुख नहीं कहना चाहिये । इस रहस्य को सुनकर दूसरों से कहना उचित नहीं है; क्योंकि यह अत्यन्त गुह्य रहस्य है ।… Read More गुह्यकाली संजीवन स्तोत्रम् ॥ अथ गुह्यकाली संजीवन स्तोत्रम् ॥ इस स्तोत्र को पढ़े बिना गुह्यकाली सहस्रनाम पठन का पूरा फल नहीं मिलता । अत: इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें । ॥ महाकाल उवाच ॥ इदं स्तोत्रं पुरा देव्या त्रिपुरघ्नाय कीर्तितम् । त्रिपुरघ्नोऽपि मां प्रादादुपदिश्य मनुं प्रिये ॥ १ ॥ गद्याकारं च स विभुः स्तोत्रं तस्यै चकार ह… Read More गुह्यकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥ अथ गुह्यकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥ ॥ पूर्वपीठिका ॥ ॥ देव्युवाच ॥ यदुक्तं भवता पूर्वं प्राणेश करुणावशात् ॥ १ ॥ नाम्नां सहस्रं देव्यास्तु तदिदानीं वदप्रभो । ॥ श्री महाकालोवाच ॥ अतिप्रीतोऽस्मि देवेशि तवाहं वचसामुना ॥ २ ॥ सहस्रनामस्तोत्रं यत् सर्वेषामुत्तमोत्तमम् । सुगोपितं यद्यपि स्यात् कथयिष्ये तथापि ते ॥ ३ ॥ देव्याः सहस्रनामाख्यं स्तोत्रं पापौघमर्दनम् ।… Read More गोपिका विरह गीत ॥ गोपिका विरह गीत ॥ एहि मुरारे कुजविहारे एहि प्रणतजनबन्धो । हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणासिन्धो । (ध्रुवपदम्) रासनिकुञ्जे गुञ्जति नियतं भ्रमरशतं किल कान्त । एहि निभृतपथपान्थ । त्वामिह याचे दर्शनदानं हे मधुसूदन शान्त ॥ १ ॥… Read More श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीरूपगोस्वामीजी द्वारा रचित श्रीयुगलकिशोराष्टक श्री रूप गोस्वामी (१४९३ – ameya jaywant narvekar १५६४), वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः षण्गोस्वामी में से एक थे। वे कवि, गुरु और दार्शनिक थे। वे सनातन गोस्वामी के भाई थे। इनका जन्म १४९३ ई (तदनुसार १४१५ शक.सं.) को हुआ था। इन्होंने २२ वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम… Read More राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ प्रातः स्मरामि युगकेलिरसाभिषिक्तं वृन्दावनं सुरमणीयमुदारवृक्षम् । सौरीप्रवाहवृतमात्मगुणप्रकाशं ADD ameya jaywant narvekar
शरभहृदय स्तोत्रम् ॥ शरभहृदय स्तोत्रम् ameya jaywant narvekar ॥ किसी भी देवता का हृदय मित्र के समान कार्य करता है, शतनाम अंगरक्षक के समान एवं सहस्रनाम सेना के समान रखा करता है अत: इनका अलग-अलग महत्व है । भूमिका के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय विष्णु ने शरभ हृदय की २१ आवृति ३ मास तक की तब शरभराज ameya jaywant narvekar प्रकट ने… Read More प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ ॥ ॐ नमः श्री कालसंकर्षिण्यै ॥ ॥ भगवान शिव उवाच ॥ एँ ख्फ्रें नमोऽस्तु ते महामाये देहातीते निरञ्जने । प्रत्यंगिरा जगद्धात्रि राजलक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥ वर्ण देहा महागौरी साधकेच्छा प्रवर्तते । पददेहामहास्फार परासिद्धि समुत्थिता ॥ तत्त्वदेहास्थिता देवि साधकान् ग्रहा स्मृता । महाकुण्डलिनी प्रोक्ता सहस्रदलस्य च भेदिनी ॥… Read More कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ Pratyangira Mala Mantra ॥ ॐ नमः शिवाये ॥ ॥ श्री भैरव उवाच ॥ ” निवसति करवीरे सर्वदाया श्मशाने विनत-जन हिताय प्रेत-रूढे महेशो हि मकर हिम-शुभ्रां पञ्च-वक्त्राम्-माद्यांदिशतु-दश-भुजाया सा श्रियं सिद्धि-लक्ष्मीः ॥ ऐं ख्फ्रे जय जय जगदम्ब प्रणत-हरिहर हिरण्य-गर्भ ।… Read More ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ इस स्तव में श्लोक ४, ५, ८, १०, ११, २५, २६ में अन्य मंत्रों के प्रयोग हैं। विनियोगः- “ॐ अस्य श्री गायत्री स्तवराज मन्त्रस्य श्रीविश्वामित्रः ऋषिः सकल जननी चतुष्पदा गायत्री परमात्मा देवता। सर्वोत्कृष्टं परम धाम तत्-सवितुर्वरेण्यं बीजं भर्गो देवस्य धीमहि शक्तिः। धियो यो नः प्रचोदयात् कीलकं। ॐ भूः ॐ भुव ॐ… Read More श्रीगायत्री सहस्रनामस्तोत्रम् एवं नामावली श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम् श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्रीगायत्री अष्टोत्तर सहस्रनाम स्तोत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीदेवी गायत्री देवता हलो बीजानि स्वराः शक्त्यः सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- श्रीब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । श्रीदेवी गायत्र्यै नमः हृदि । हल्भ्यो बीजेभ्यो नमः गुह्ये । स्वरेभ्यः शक्तिभ्यः नमः पादयोः ।… Read More ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ नमस्कृत्य भगवान् याज्ञवल्क्यः स्वयं परिपृच्छति- त्वं ब्रूहि भगवन् ! गायत्र्या उत्पत्तिं श्रोतुमिच्छामि ॥ १ ॥ ब्रह्मोवाच – प्रणवेन व्याहृतयः प्रवर्तन्ते । तमसस्तु परं ज्योतिः कः पुरुषः स्वयम्भूर्विष्णुरिति हताः स्वाङ्गुल्याः मथयेत् पाठान्तर – … ameya jaywant narvekar Read More ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ अथ श्रीमद्देवीभागवते महापुराणे गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ नारद उवाच ॥ भगवन् देवदेवेश भूतभव्य जगत्प्रभो । कवचं च श्रृतं दिव्यं गायत्रीमन्त्रविग्रहम् ॥ १ ॥ अधुना श्रोतुमिच्छामि गायत्रीहृदयं परम् । यद्धारणाद्भवेत्पुण्यं गायत्रीजपतोऽखिलम् ॥ २ ॥ ॥ श्रीनारायण उवाच ॥ देव्याश्च हृदयं प्रोक्तं नारदाथर्वणे स्फुटम् । तदेवाहं प्रवक्ष्यामि रहस्यातिरहस्यकम् ॥ ३ ॥ विराड्रूपां महादेवीं गायत्रीं… Read More ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्र (Gayatri Panjara Stotram) को नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है गायत्री पञ्जर स्तोत्र पढ़ने से साधना में सफ़लता, अपने शरीर की रक्षा कवच का कार्य करता हैं ! पीपल की छाया (पीपल मूल) में जप करने से राजा का वशीकरण, बिल्व मूल… Read More कालभैरव ameya jaywant narvekar ( कालभैरवाष्टमी ) कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) ।। ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है। तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनी-हदय-दीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्… Read More मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ देव देव महादेव! संसारार्णव तारक ! गायत्री कवचं देव ! कृपया कथय प्रभो । ॥ महादेव उवाच ॥ मूलाधारेषु या नित्या कुण्डली तत्त्व-रूपिणी । सूक्ष्माति सूक्ष्मा परमा विसतन्तु-स्वरूपिणी ॥ विद्युत-पुञ्ज-प्रतीकाशा कुण्डलाकृति-रूपिणी । परम-ब्रह्म गृहिणी पञ्चाशद् वर्ण-रूपिणी ॥ शिवस्य नर्तकी नित्या परम् ब्रह्म-पूजिता । ब्रह्मणः सैव गायत्री सच्चिदानन्दरूपिणी ॥ तद् भ्रमावर्त्तवातोऽयं… Read More ameya jaywant narvekar
Wonderful pic
ReplyDeleteGANPATI BAPPA MORYA AMEYA JAYWANT NARVEKAR
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महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १५ - ameya jaywant narvekar कामकलाकाल्याः प्राणायुताक्षरी मन्त्रः
ReplyDeleteओं ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं हूं छूीं स्त्रीं फ्रें क्रों क्षौं आं स्फों स्वाहा कामकलाकालि, ह्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं ठः ठः दक्षिणकालिके, ऐं क्रीं ह्रीं हूं स्त्री फ्रे स्त्रीं ख भद्रकालि हूं हूं फट् फट् नमः स्वाहा भद्रकालि ओं ह्रीं ह्रीं हूं हूं भगवति श्मशानकालि नरकङ्कालमालाधारिणि ह्रीं क्रीं कुणपभोजिनि फ्रें फ्रें स्वाहा श्मशानकालि क्रीं हूं ह्रीं स्त्रीं श्रीं क्लीं फट् स्वाहा कालकालि, ओं फ्रें सिद्धिकरालि ह्रीं ह्रीं हूं स्त्रीं फ्रें नमः स्वाहा गुह्यकालि, ओं ओं हूं ह्रीं फ्रें छ्रीं स्त्रीं श्रीं क्रों नमो धनकाल्यै विकरालरूपिणि धनं देहि देहि दापय दापय क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षं क्षं क्षं क्षं क्ष्लं क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्रों क्रोः आं ह्रीं ह्रीं हूं हूं नमो नमः फट् स्वाहा धनकालिके, ओं ऐं क्लीं ह्रीं हूं सिद्धिकाल्यै नमः सिद्धिकालि, ह्रीं चण्डाट्टहासनि जगद्ग्रसनकारिणि नरमुण्डमालिनि चण्डकालिके क्लीं श्रीं हूं फ्रें स्त्रीं छ्रीं फट् फट् स्वाहा चण्डकालिके नमः कमलवासिन्यै स्वाहालक्ष्मि ओं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मि, ह्रीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा अन्नपूर्णे, ओं ह्रीं हूं उत्तिष्ठपुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा क्रोधदुर्गे भगवति शमय स्वाहा हूं ह्रीं ओं, वनदुर्गे ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतरतनुरूपे चट चट प्रचट प्रचट कह कह रम रम बन्ध बन्ध घातय घातय हूं फट् विजयाघोरे, ह्रीं पद्मावति स्वाहा पद्मावति, महिषमर्दिनि स्वाहा महिषमर्दिनि, ओं दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा जयदुर्गे, ओं ह्रीं दुं दुर्गायै स्वाहा, ऐं ह्रीं श्रीं ओं नमो भगवत मातङ्गेश्वरि सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि सर्वदुष्टमृगवशङ्करि सर्वग्रहवशङ्करि सर्वसत्त्ववशङ्कर सर्वजनमनोहरि सर्वमुखरञ्जिनि सर्वराजवशङ्करि ameya jaywant narvekar सर्वलोकममुं मे वशमानय स्वाहा, राजमातङ्ग उच्छिष्टमातङ्गिनि हूं ह्रीं ओं क्लीं स्वाहा उच्छिष्टमातङ्गि, उच्छिष्टचाण्डालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः उच्छिष्टचाण्डालिनि, ओं ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां मुखं वाचं स्त म्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्रीं ओं स्वाहा बगले, ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं धनलक्ष्मि ओं ह्रीं ऐं ह्रीं ओं सरस्वत्यै नमः सरस्वति, आ ह्रीं हूं भुवनेश्वरि, ओं ह्रीं श्रीं हूं क्लीं आं अश्वारूढायै फट् फट् स्वाहा अश्वारूढे, ओं ऐं ह्रीं नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ऐं ह्रीं स्वाहा नित्यक्लिन्ने । स्त्रीं क्षमकलह्रहसयूं.... (बालाकूट)... (बगलाकूट )... ( त्वरिताकूट) जय भैरवि श्रीं ह्रीं ऐं ब्लूं ग्लौः अं आं इं राजदेवि राजलक्ष्मि ग्लं ग्लां ग्लिं ग्लीं ग्लुं ग्लूं ग्लं ग्लं ग्लू ग्लें ग्लैं ग्लों ग्लौं ग्ल: क्लीं श्रीं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं पौं राजराजेश्वरि ज्वल ज्वल शूलिनि दुष्टग्रहं ग्रस स्वाहा शूलिनि, ह्रीं महाचण्डयोगेश्वरि श्रीं श्रीं श्रीं फट् फट् फट् फट् फट् जय महाचण्ड- योगेश्वरि, श्रीं ह्रीं क्लीं प्लूं ऐं ह्रीं क्लीं पौं क्षीं क्लीं सिद्धिलक्ष्म्यै नमः क्लीं पौं ह्रीं ऐं राज्यसिद्धिलक्ष्मि ओं क्रः हूं आं क्रों स्त्रीं हूं क्षौं ह्रां फट्... ( त्वरिताकूट )... (नक्षत्र- कूट )... सकहलमक्षखवूं ... ( ग्रहकूट )... म्लकहक्षरस्त्री... (काम्यकूट)... यम्लवी... (पार्श्वकूट)... (कामकूट)... ग्लक्षकमहव्यऊं हहव्यकऊं मफ़लहलहखफूं म्लव्य्रवऊं.... (शङ्खकूट )... म्लक्षकसहहूं क्षम्लब्रसहस्हक्षक्लस्त्रीं रक्षलहमसहकब्रूं... (मत्स्यकूट ).... (त्रिशूलकूट)... झसखग्रमऊ हृक्ष्मली ह्रीं ह्रीं हूं क्लीं स्त्रीं ऐं क्रौं छ्री फ्रें क्रीं ग्लक्षक- महव्यऊ हूं अघोरे सिद्धिं मे देहि दापय स्वाहा अघोरे, ओं नमश्चा ameya jaywant narvekar
महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १५ - कामकलाकाल्याः प्राणायुताक्षरी मन्त्रः
ReplyDeleteओं ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं हूं छूीं स्त्रीं फ्रें क्रों क्षौं आं स्फों स्वाहा कामकलाकालि, ह्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं ठः ठः दक्षिणकालिके, ऐं क्रीं ह्रीं हूं स्त्री फ्रे स्त्रीं ख भद्रकालि हूं हूं फट् फट् नमः स्वाहा भद्रकालि ओं ह्रीं ह्रीं हूं हूं भगवति श्मशानकालि नरकङ्कालमालाधारिणि ह्रीं क्रीं कुणपभोजिनि फ्रें फ्रें स्वाहा श्मशानकालि क्रीं हूं ह्रीं स्त्रीं श्रीं क्लीं फट् स्वाहा कालकालि, ओं फ्रें सिद्धिकरालि ह्रीं ह्रीं हूं स्त्रीं फ्रें नमः स्वाहा गुह्यकालि, ओं ओं हूं ह्रीं फ्रें छ्रीं स्त्रीं श्रीं क्रों नमो धनकाल्यै विकरालरूपिणि धनं देहि देहि दापय दापय क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षं क्षं क्षं क्षं क्ष्लं क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्रों क्रोः आं ह्रीं ह्रीं हूं हूं नमो नमः फट् स्वाहा धनकालिके, ओं ऐं क्लीं ह्रीं हूं सिद्धिकाल्यै नमः सिद्धिकालि, ह्रीं चण्डाट्टहासनि जगद्ग्रसनकारिणि नरमुण्डमालिनि चण्डकालिके क्लीं श्रीं हूं फ्रें स्त्रीं छ्रीं फट् फट् स्वाहा चण्डकालिके नमः कमलवासिन्यै स्वाहालक्ष्मि ओं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मि, ह्रीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा अन्नपूर्णे, ओं ह्रीं हूं उत्तिष्ठपुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा क्रोधदुर्गे भगवति शमय स्वाहा हूं ह्रीं ओं, वनदुर्गे ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतरतनुरूपे चट चट प्रचट प्रचट कह कह रम रम बन्ध बन्ध घातय घातय हूं फट् विजयाघोरे, ह्रीं पद्मावति स्वाहा पद्मावति, महिषमर्दिनि स्वाहा महिषमर्दिनि, ओं दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा जयदुर्गे, ओं ह्रीं दुं दुर्गायै स्वाहा, ऐं ह्रीं श्रीं ओं नमो भगवत मातङ्गेश्वरि सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि सर्वदुष्टमृगवशङ्करि सर्वग्रहवशङ्करि सर्वसत्त्ववशङ्कर सर्वजनमनोहरि सर्वमुखरञ्जिनि सर्वराजवशङ्करि ameya jaywant narvekar सर्वलोकममुं मे वशमानय स्वाहा, राजमातङ्ग उच्छिष्टमातङ्गिनि हूं ह्रीं ओं क्लीं स्वाहा उच्छिष्टमातङ्गि, उच्छिष्टचाण्डालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः उच्छिष्टचाण्डालिनि, ओं ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां मुखं वाचं स्त म्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्रीं ओं स्वाहा बगले, ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं धनलक्ष्मि ओं ह्रीं ऐं ह्रीं ओं सरस्वत्यै नमः सरस्वति, आ ह्रीं हूं भुवनेश्वरि, ओं ह्रीं श्रीं हूं क्लीं आं अश्वारूढायै फट् फट् स्वाहा अश्वारूढे, ओं ऐं ह्रीं नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ऐं ह्रीं स्वाहा नित्यक्लिन्ने । स्त्रीं क्षमकलह्रहसयूं.... (बालाकूट)... (बगलाकूट )... ( त्वरिताकूट) जय भैरवि श्रीं ह्रीं ऐं ब्लूं ग्लौः अं आं इं राजदेवि राजलक्ष्मि ग्लं ग्लां ग्लिं ग्लीं ग्लुं ग्लूं ग्लं ग्लं ग्लू ग्लें ग्लैं ग्लों ग्लौं ग्ल: क्लीं श्रीं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं पौं राजराजेश्वरि ज्वल ज्वल शूलिनि दुष्टग्रहं ग्रस स्वाहा शूलिनि, ह्रीं महाचण्डयोगेश्वरि श्रीं श्रीं श्रीं फट् फट् फट् फट् फट् जय महाचण्ड- योगेश्वरि, श्रीं ह्रीं क्लीं प्लूं ऐं ह्रीं क्लीं पौं क्षीं क्लीं सिद्धिलक्ष्म्यै नमः क्लीं पौं ह्रीं ऐं राज्यसिद्धिलक्ष्मि ओं क्रः हूं आं क्रों स्त्रीं हूं क्षौं ह्रां फट्... ( त्वरिताकूट )... (नक्षत्र- कूट )... सकहलमक्षखवूं ... ( ग्रहकूट )... म्लकहक्षरस्त्री... (काम्यकूट)... यम्लवी... (पार्श्वकूट)... (कामकूट)... ग्लक्षकमहव्यऊं हहव्यकऊं मफ़लहलहखफूं म्लव्य्रवऊं.... (शङ्खकूट )... म्लक्षकसहहूं क्षम्लब्रसहस्हक्षक्लस्त्रीं रक्षलहमसहकब्रूं... (मत्स्यकूट ).... (त्रिशूलकूट)... झसखग्रमऊ हृक्ष्मली ह्रीं ह्रीं हूं क्लीं स्त्रीं ऐं क्रौं छ्री फ्रें क्रीं ग्लक्षक- महव्यऊ हूं अघोरे सिद्धिं मे देहि दापय स्वाहा अघोरे, ओं नमश्चा ameya jaywant narvekar
'उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः August 30, 2019 | aspundir | 1 Comment ॥ अथ उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः ॥ उच्छिष्ट गणपति का प्रयोग अत्यंत सरल है तथा इसकी साधना में अशुचि-शुचि आदि बंधन नहीं हैं तथा मंत्र शीघ्रफल प्रद है । यह अक्षय भण्डार का देवता है । प्राचीन समय में यति जाति के साधक उच्छिष्ट गणपति या उच्छिष्ट चाण्डालिनी (मातङ्गी) की साधना व सिद्धि द्वारा थोड़े से भोजन प्रसाद से नगर व ग्राम का भण्डारा कर देते थे । इसकी साधना करते समय मुँह उच्छिष्ट होना चाहिये । मुँह में गुड़, पताशा, सुपारी, लौंग, इलायची ताम्बूल आदि कोई एक पदार्थ होना चाहिये । पृथक-पृथक कामना हेतु पृथक-पृथक पदार्थ है । यथा -लौंग, इलायची वशीकरण हेतु । सुपारी फल प्राप्ति व वशीकरण हेतु । गुडौदक – अन्नधनवृद्धि हेतु तथा सर्व सिद्धि हेतु ताम्बूल का प्रयोग करें । अगर साधक पर तामसी कृत्या प्रयोग किया हुआ है, तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट कर साधक की रक्षा करते हैं। ॥ अथ नवाक्षर उच्छिष्टगणपति मंत्रः ॥ मंत्र – हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । विनियोगः – ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मन्त्रस्य कंकोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपति देवता, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः – ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषिः नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, उच्छिष्ट गणपति देवता नमः हृदये, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । करन्यास ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः । ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नमः । ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । हृदयादिन्यासः- ॐ हस्ति हृदयाय नमः । ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा । ॐ लिखे शिखायै वषट् । ॐ स्वाहा कवचाय हुम् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा अस्त्राय फट् स्वाहा । ॥ ध्यानम् ॥ चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशाङ्कुशौ मोदकपात्रदन्तौ । करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुन्मत्त गणेश मीडे । (क्वचिद् पाशाङ्कुशौ कल्पलतां स्वदन्तं करैवहन्तं कनकाद्रि कान्ति) ॥ अथ दशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – १॰ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । २॰ ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ द्वादशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ एकोनविंशत्यक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा । विनियोगः- अस्योच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः, गायत्री छन्दः , उच्छिष्ट गणपतिर्देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ अथ एक-त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ADD ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteदशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र August 30, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ अथ दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र ॥ मन्त्र – गं क्षिप्रप्रसादनाय नमः । क्षिप्र प्रसाद गणपति का पूजन श्रीविद्या ललिता सुन्दरी उपासना में मुख्य है । इनके बिना श्री विद्या अधूरी है। जो साधक श्री साधना करते हैं उन्हें सर्वप्रथम इनकी साधना कर इन्हें प्रसन्न करना चाहिए। कामदेव की भस्म से उत्पन्न दैत्य से श्री ललितादेवी के युद्ध के समय देवी एवं सेना के सम्मोहित होने पर इन्होंने ही उसका वध किया था। इनकी उपासना से विघ्न, आलस्य, कलह़, दुर्भाग्य दूर होकर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। विनियोगः- ॐ अस्य श्री क्षिप्र प्रसाद गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः । विराट् छन्दः, क्षिप्र प्रसादनाय देवता, गं बीजं, आं शक्तिं, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । करन्यास अंग न्यास ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नमः । हृदयाय नमः । ॐ गं तर्जनीभ्यां नमः । शिरसे स्वाहा । ॐ गं मध्यमाभ्यां नमः । शिखायै वषट् । ॐ गं अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुम् । ॐ गं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । नैत्रत्रयाय वौषट् । ॐ गं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अस्त्राय फट् । ध्यानम् पाशांकुशौ कल्पलतां विषाणं दधत् स्वशुण्डाहित बीजपूरः । रक्तस्त्रिनेत्रस्तरुणेन्दु मौलिर्हारोज्ज्वलो हस्तिमुखोऽवताद् वः ॥ रक्त वर्ण, पाश, अंकुश, कल्पलता हाथ में लिए वरमुद्रा देते हुए, शुण्डाग्र में बीजापुर लिए हुए, तीन नेत्र वाले, उज्ज्वल हार इत्यादि आभूषणों से सज्जित, हस्ति मुख गणेश का मैं ध्यान करता हूं। यंत्रार्चनम् :- यंत्र देवता वक्रतुण्ड गणेश के ही है, प्रथमावरणम् – षट्कोण में हृदयशक्ति, शिरशक्ति, शिखाशक्ति, कवचशक्ति, नेत्रशक्ति एवं अस्त्रशक्ति का पूजन करें । द्वितीयावरणम् – अष्ट दलों में निम्न (क्षिप्रप्रसाद स्वरूपों का पूजन करे – ॐ विघ्नाय नमः ॥ १ ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ २ ॥ ॐ शूराय नमः ॥ ३ ॥ ॐ वीराय नमः ॥ ४ ॥ ॐ वरदाय नमः ॥ ५ ॥ ॐ इभक्त्राय नमः ॥ ६ ॥ ॐ एकरदाय नमः ॥ ७ ॥ ॐ लंबोदराय नमः ॥ ८ ॥ तृतीय व चतुर्थावरण में इसके बाद भूपूर में इन्द्रादि लोकपालों व आयुधों की पूर्व यंत्रार्चन विधि अनुसार करें । चार लाख जप कर, चालीस हजार आहुति मोदक से तथा नित्य चार सौ चवालीस (444) तर्पण करने से अपार धन-संपत्ति प्राप्त होती है । तर्पण में नारियल का जल या गुड़ोदक प्रयोग कर सकते हैं । त्रिकाल (सुबह-दोपहर-संध्या) को जप का विशेष महत्व है । अंगुष्ठ बराबर प्रतिमा बनाकर श्री क्षिप्रप्रसाद गणेश यंत्र के ऊपर स्थापित कर पूजन करें । श्री गणेश शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं । ADD ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteश्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् July 24, 2015 | aspundir | 2 Comments श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् प्रणाम-मन्त्रः- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ।। पूर्व-पीठिका ।। ॐ नमस्कृत्य महा-देवं, सर्वज्ञं परमेश्वरम् ।। ।। श्री पार्वत्युवाच ।। भगवन् देव-देवेश, शंकर परमेश्वर ! कथ्यतां मे परं स्तोत्रं, कवचं कामिनां प्रियम् ।। जप-मात्रेण यद्वश्यं, कामिनी-कुल-भृत्यवत् । कन्यादि-वश्यमाप्नोति, विवाहाभीष्ट-सिद्धिदम् ।। भग-दुःखैर्न बाध्येत, सर्वैश्वर्यमवाप्नुयात् ।। ।। श्रीईश्वरोवाच ।। अधुना श्रुणु देवशि ! कवचं सर्व-सिद्धिदं । विश्वावसुश्च गन्धर्वो, भक्तानां भग-भाग्यदः ।। कवचं तस्य परमं, कन्यार्थिणां विवाहदं । जपेद् वश्यं जगत् सर्वं, स्त्री-वश्यदं क्षणात् ।। भग-दुःखं न तं याति, भोगे रोग-भयं नहि । लिंगोत्कृष्ट-बल-प्राप्तिर्वीर्य-वृद्धि-करं परम् ।। महदैश्वर्यमवाप्नोति, भग-भाग्यादि-सम्पदाम् । नूतन-सुभगं भुक्तवा, विश्वावसु-प्रसादतः ।। विनियोगः- ॐ अस्यं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवता, ऐं क्लीं बीजं, क्लीं श्रीं शक्तिः, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकं, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः ।। ऋष्यादि-न्यासः- विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवतायै नमः हृदि, ऐं क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, क्लीं श्रीं शक्तये नमः पादयो, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकाय नमः नाभौ, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।। षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास – अंग-न्यास – ॐ क्लीं ऐं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः ॐ क्लीं श्रीं गन्धर्व-राजाय क्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ॐ क्लीं कन्या-दान-रतोद्यमाय क्लीं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट् ॐ क्लीं धृत-कह्लार-मालाय क्लीं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम् ॐ क्लीं भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट् ॐ क्लीं सौः हंसः ब्लूं ग्लौं क्लीं करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट् मन्त्रः- ॐ क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय नमः ॐ ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौः ब्लूं ग्लौं क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय कन्या-दान-रतोद्यमाय धृत-कह्लार-मालाय भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय सालंकारां सु-रुपां दिव्य-कन्या-रत्नं मे देहि-देहि, मद्-विवाहाभीष्टं कुरु-कुरु, सर्व-स्त्री वशमानय, मे लिंगोत्कृष्ट-बलं प्रदापय, मत्स्तोकं विवर्धय-विवर्धय, भग-लिंग-रोगान् अपहर, मे भग-भाग्यादि-महदैश्वर्यं देहि-देहि, प्रसन्नो मे वरदो भव, ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौं ब्लूं ग्लौं क्लीं नमः स्वाहा ।। (२०० अक्षर, १२ बार जपें) गायत्री मन्त्रः- ॐ क्लीं गन्धर्व-राजाय विद्महे कन्याभिः परिवारिताय धीमहि तन्नो विश्वावसु प्रचोदयात् क्लीं ।। (१० बार जपें) ध्यानः- क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् कह्लार-माला-धृतन्, स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मुथुनासने संस्थितम्, स्रातुं मे मदनारविन्द-सुमदं विश्वावसुं मे गुरुम् क्लीं ।। ध्यान के बाद, उक्त मन्त्र को १२ बार तथा गायत्री-मन्त्र को १० बार जपें । कवच मूल पाठ ।। कवच मूल पाठ ।। क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् माला-धृतन्- स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मिथुनासने संस्थितं, त्रातुं मे ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteश्रीबटुक-भैरव-साधना श्रीबटुक-भैरव-साधना विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबटुक-भैरव-त्रिंशदक्षर-मन्त्रस्य श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता, ‘ह्रीं’ बीजं, भैरवी-वल्लभ शक्तिः, दण्ड-पाणि कीलकं, मम समस्त-शत्रु-दमने, समस्तापन्निवारणे, सर्वाभीष्ट-प्रदाने वा जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवतायै नमः हृदि, ‘ह्रीं’ बीजाय नमः गुह्ये, भैरवी-वल्लभ शक्तये नमः नाभौ, दण्ड-पाणि कीलकाय नमः पादयो, मम… Read More आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग “भैरव-तन्त्र” के अनुसार आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं – १॰ रात्रि में तीन मास तक प्रति-दिन ३८ पाठ करने से (कुल ११४० पाठ) विद्या और धन की प्राप्ति होती है। २॰ तीन मास तक रात्रि में नौ अथवा बारह पाठ प्रति-दिन करने से ‘इष्ट-सिद्धि’ प्राप्त होती है ।… Read More श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र ॐ गुरोः सेवां त्यक्त्वा गुरुवचन-शक्तोपि न भवे भवत्पूजा-ध्यानाज्जप 1 हवन-यागा 2 द्विरहितः । त्वदर्च-निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं व कृतवान् जगज्जाल-ग्रसतो झटिति कुरु हार्दं मयि विभो ।।१ प्रभो ! दुर्गासूनो ! तव शरणतां सोऽधिगतवान् कृपालो ! दुःखार्तः कमपि भवदन्यं प्रकथये । सुहृत् 3 ! सम्पत्तेऽहं सरल 4-विरलः 5 साधकजन स्त्वदन्यः 6 कस्त्राता भव-दहन-दाहं शमयति ।।२… Read More गो-मय गणपति उपासना गो-मय गणपति उपासना ‘गो-मय गणपति उपासना’– २१ दिनों की अति-प्रभावी उपासना है। यह उपासना किसी भी मास की शुक्ल चतुर्थी या शुभ दिन से प्रारम्भ की जा सकती है। संकल्पः- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्यि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे आर्यावर्त्त-देशे अमुक पुण्य-क्षेत्रे कलि-युगे कलि-प्रथम-चरणे ‘अमुक’-नाम संवत्सरे भाद्रपद-मासे शुक्ल-पक्षे चतुर्थी-तिथौ अमुक-वासरे अमुक-गोत्रोत्पन्नो अमुक नाम-शर्मा-वर्मा-दास गणपति-देवता -प्रीति-पूर्वक त्वरित… Read More श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु (१) ‘संकष्टी-चतुर्थी’ को उपासना प्रारम्भ करे। स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रीगणेश जी के सामने बैठे। तथा-शक्ति ‘पूजन’ करे। ‘पूजा’ में रक्त अक्षत्, रक्त पुष्प, शमी-पत्र तथा दूर्वा चढ़ाए। फिर, हृदय में ‘श्रीगणेश’ का ‘ध्यान’ करे- “श्वेताभं शशि-शेखरं त्रिनयनं श्वेताम्बरालंकृतं। श्रीवाणी-सहितं रमेश-वरदं पीयूष-मूर्ति प्रभुम्।। पीयूषं निज-बाहुभिश्चदधतं पाशांकुशौ मुद्-गरं। नागास्यं सततं सुरैश्च… Read More श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु (१) श्रीसुधा-गणेश-साधनाः- यह एक निश्चित फल-प्रद साधना है। इसके लिए पहले दूर्वा (दूब) ले आए। दूर्वा तोड़ते समय निम्न मन्त्र पढ़ें- “दूर्वे अमृत-सम्पन्ने, शत-मूले शतांकुरे ! क्षमस्वोत्पाटनं देवि ! महद्दोषोऽत्र विद्यते।।” पूजन-सामग्री एकत्र करने के बाद स्वच्छ होकर भगवान् श्रीगणेश का यथा-शक्ति पूजन करे। पूजन के बाद निम्न-लिखित मन्त्र का जप करे। यथा-… Read More भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ (१) श्री सिद्ध-विनायक-व्रत ‘श्री सिद्ध-विनायक-व्रत’ भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को करे। पहले निम्न-लिखित मन्त्र का १००० या अधिक ‘जप’ करे। यथा- “सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवन्ता हतः। सुकुमार कामरोदीस्तव ह्येषः स्यमन्तकः।।” फिर श्री गणेश जी का षोडशोपचार पूजन कर, २१ मोदकों का नैवेद्य रखे। तब २१ दूर्वा लेकर उन्हें गन्ध-युक्त करे और… Read More श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ‘कलौ चण्डी-विनायकौ’– कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteCategory: यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र जययुक्त श्रीदेवी – अष्टोत्तर-सहस्रनाम श्रीदुर्गा कवचम् श्रीदुर्गापदुद्धारस्तोत्रम् दुर्गास्तुतिः कामेश्वरीस्तुतिः दुर्गासहस्रनाम स्तोत्रम् / नामावली खंजनदर्शन तथा शुभाशुभ फलानि शमी पूजन प्रयोगः अश्व गज पूजन प्रयोगः नवदुर्गा प्रार्थना व ध्यान सिद्धिदात्री त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोगः हरगौरी मंत्र महागौरी कालरात्रि श्रीराम कृत कात्यायनी स्तुति पाण्डवाः कृत कात्यायनी स्तुति कात्यायनी स्कन्द माता कूष्माण्डा चन्द्रघण्टा ब्रह्मचारिणी शैलपुत्री सहस्रनाम हिमालयराज कृत शैलपुत्री स्तुति शैलपुत्री दुर्गम संकटनाशन स्तोत्र ब्रह्माण्डमोहनाख्यं दुर्गाकवचम् ब्रह्माण्डविजय दुर्गा कवचम् वंशवृद्धिकरं दुर्गाकवचम् अथवा वंशकवचम् श्री चण्डिका मालामन्त्र प्रयोगः सिद्धिचण्डी महाविद्या सहस्राक्षर मन्त्र भगवती दुर्गा भगवती गौरी दुर्गाभुवनवर्णनम् ख्वाब में जुए-सट्टे का नम्बर जानने की विधि पीरों के पीर गौस ए आजम दुश्मन ज़बानबंदी / दुश्मन को बेअसर करना दो लोगों के बीच लड़ाई करवाकर अलग करने का टोटका पितृसूक्त वेदोक्त पितृसूक्त पुराणोक्त पितृस्तोत्र अभीष्ट फलदायक बाह्य शान्ति सूक्त गौरिकृतम् हेरम्बस्तोत्रं महागणपति मंत्रः गणेश शाबर मंत्र विरिगणपति दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः भगवान् श्रीगणेश के विभिन्न मन्त्र एकाक्षर गणपति कवचम् अथवा त्रैलोक्यमोहन कवचम् शत्रुसंहारकमेकदन्तस्तोत्रम् विघ्न-निवारकं सिद्धिविनायक स्तोत्रम् उच्छिष्ट गणेश स्तवराजः श्रीउच्छिष्ट गणपति सहस्रनाम स्तोत्रम् भगवान् श्रीकृष्ण की शरणागति और उनका आश्रय प्राप्त करने हेतु भगवान् श्रीकृष्ण से सर्वमनोकामना पूर्ति हेतु सरल अनुष्ठान श्रीराधाजी का आश्रय एवं लौकिक समृद्धि पाने हेतु सरल अनुष्ठान भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये सरल अनुष्ठान श्रीराधा-माधवप्रेमकी प्राप्तिके लिये लौकिक सरल अनुष्ठान श्रीराधास्तोत्रम् गोपालस्तोत्रं अथवा गोपालस्तवराजस्तोत्रम् श्रीकृष्ण सहस्रनाम स्तोत्र श्रीकृष्णस्तोत्रम् श्रीराधा त्रैलोक्यमोहन यन्त्रम् श्रीकृष्ण यंत्रावरण पूजनम् राधा यंत्रावरण पूजनम् श्रीराधा-माधव यन्त्र श्रीकृष्ण – दशाक्षर मन्त्र प्रयोगः श्रीकृष्ण – अष्टाक्षर मन्त्र चतुर्विंशति-मूर्तिस्तोत्र एवं द्वादशाक्षर स्तोत्र नागपत्नीकृत कृष्ण स्तुतिः गर्भगत कृष्णस्तुतिः श्रीकृष्ण कवचम् श्रीकृष्ण कवचम् – ब्रह्माणं प्रति योगनिद्रयोपदिष्टं मालावतीकृतं महापुरुष स्तोत्रम् श्रीकृष्णसहस्रनामम् – गर्गसंहितान्तर्गतं श्रीकृष्ण – एकाक्षरी मन्त्र त्रैलोक्यविजयं श्रीकृष्ण कवचम् कृष्णप्रेमामृतं स्तवं अथवा ameya jaywant narvekar श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् पाशुपतास्त्र प्रयोगः अघोरास्त्र मन्त्र प्रयोगः ईशानादि पंचवक्त्र पूजा रक्षा बन्धन विधि शिव स्तुतिः चण्डेश्वर मंत्र: अर्द्धनारीश्वर मंजुघोष प्रयोगः वीरभद्र मंत्र प्रयोगः श्रीसुब्रह्मण्य (कार्तिकेय)- ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteCategory: साधन-माला पितृसूक्त अभीष्ट फलदायक बाह्य शान्ति सूक्त भगवान् श्रीकृष्ण से सर्वमनोकामना पूर्ति हेतु सरल अनुष्ठान श्रीराधाजी का आश्रय एवं लौकिक समृद्धि पाने हेतु सरल अनुष्ठान भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये सरल अनुष्ठान श्रीराधा-माधवप्रेमकी प्राप्तिके लिये लौकिक सरल अनुष्ठान रक्षा बन्धन विधि श्रीनृसिंह पूजन विधि शत्रुबाधा निवारण हेतु नृसिंह कवच प्रयोग जानकी नवमी से करें शीघ्र विवाह हेतु जानकी मंगल प्रयोग महर्षि आश्वलायन-कृत माँ सरस्वती का विशिष्ट पाठ श्रीपञ्चमी-वसन्तपञ्चमी श्रीआकाशभैरव चित्रमाला मंत्र शरभ मालामन्त्रम् देवी-देवताओं के गायत्री मन्त्र श्रीनाथादि गुरुत्रयं मण्डल पूजन प्रयोगः हनुमान जी का वीर-साधन-प्रयोग श्रीगायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति श्री परशुराम प्रयोग धन-तेरस पर धनदायक प्रयोग भगवान् धन्वन्तरि अष्टोत्तर-शत-नामावली शनि-पीड़ा के लिए प्रभाव-पूर्ण उपासनाएँ शनि-साढ़ेसाती के शांति उपाय विशेष कड़ाही पूजा श्रीदुर्गा-अष्टोत्तर-शत-नाम-साधना श्रीदुर्गे स्मृतेति – मन्त्र की साधना कुमारी पूजा सर्वोपयोगी अनुभूत साधना अमोघ लघु प्रयोग महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग त्रि-विध-सिद्धि-प्रद मन्त्र तन्त्रोक्त कवच संस्कार ग्रह-बाधा, ज्वर-नाशक विघ्नेश-मन्त्र श्रीसंग्राम-विजया विद्या सर्प-भय-निवारण के प्रयोग सिद्ध लक्ष्मी-प्रार्थना भगवान् श्रीकृष्ण की साधना धनाधीश कुबेर यन्त्र धनाधीश कुबेर के मन्त्र दारिद्र्य-दहन-विधि सर्व-कार्य-सिद्धि के लिये रोग, उपद्रव की शान्ति हेतु सप्तशती-प्रयोग रोग नाशक देवी मन्त्र श्रीसूक्तः साधना के आयाम श्रीसूक्त के प्रयोग श्रीसूक्त-विधान सुन्दर काण्ड का अद्भुत अनुष्ठान ऋण-मुक्ति श्रीभैरव-मन्त्र ऋण-मोचन महा-गणपति-स्तोत्र ऋण-हरण श्री गणेश-मन्त्र प्रयोग विविध फल-दायिनी श्रीचित्रसेन-साधना दुःस्वप्न-नाशक प्रयोग लक्ष्मी – नाम मन्त्र द्वारा हवन श्री महा-नवार्ण-मन्त्र साधन-विधि माता महा-लक्ष्मी की अनुभूत साधना / मन्त्र नवनाथ वन्दनाष्टकम् नव-नाथ साम्प्रदायिक पूजा-विधान बन्दी-मोचन-मन्त्र-प्रयोग कार्तवीर्यार्जुन-माला-मन्त्र कामाख्या-मन्त्र-प्रयोग भगवान् श्रीकृष्णोपासना कलश एवं जयन्ती का माहात्म्य कार्तवीर्यार्जुन दर्पण-प्रयोग कार्तवीर्यार्जुन मन्त्र-प्रयोग क्लीं-बीज का अनुभूत प्रयोग सर्व-संकट-हारी-प्रयोग विद्या-प्राप्ति-प्रयोग सर्वाभीष्टप्रद-प्रयोग श्रीगिरिजा दशक: एक सिद्ध प्रयोग शान्ति मन्त्र श्रीकृष्ण कीलक भाग्योदय हेतु श्रीमहा-लक्ष्मी-साधना सुख-शान्ति-दायक महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग सर्व-संकटहारी-प्रयोग हनुमान लहरी परीक्षा में सफलता, स्मरण-शक्ति-वर्द्धन प्रयोग आत्म-ज्योति-साधना विपत्तिनाश, सम्पदा-प्राप्ति, साधन-सिद्धि कन्या विवाह हेतु प्रार्थना सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र त्रिकाल-दर्शक गौरी-शिव मन्त्र विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम् शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र कुंजिका स्तोत्र और ‘बीसा यन्त्र’ का अनुभूत अनुष्ठान शत्रु-विनाशक आदित्य-हृदय चक्षुष्मती विद्या हनुमत साठिका संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् हनुमान् वडवानल स्तोत्र हनुमान जी के संकट-नाशक अनुष्ठान सर्व सिद्धिदायक हनुमान मन्त्र हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र-प्रयोग आञ्जनेयास्त्रम् मनोवांछित वर-प्राप्ति प्रयोग दरिद्रता-नाशक तथा धन-सम्पत्ति-दायक स्तोत्र शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग महाकवि श्रीहर्ष और चिन्तामणि मन्त्र अर्द्ध-नारीश्वर-चिन्तामणि-मन्त्र-साधना रोग एवं अपमृत्यु-निवारक प्रयोग श्रीबटुक-भैरव-मन्त्र-जप-विधि श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् गन्धर्व-राज विश्वावसु श्रीबटुक-भैरव-साधना आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र गो-मय गणपति उपासना श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteमहा-मृत्युञ्जय-कवच श्रीमहा-मृत्युञ्जय-कवच ।।पूर्व-पीठिका-श्रीभैरव उवाच।। श्रृणुष्व परमेशानि ! कवचं मन्मुखोदितम् । महा-मृत्युञ्जयस्यास्य, न देवं परमाद्भुतम् ।।१ यं धृत्वा यं पठित्वा च, श्रुत्वा च कवचोत्तमम् । त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा, सुखितोऽस्मि महेश्वरि ! ।।२ तदेव वर्णयिष्यामि, तव प्रीत्या वरानने । तथापि परमं तत्त्वं, न दातव्यं दुरात्मने ।।३… Read More श्रीमहादेव-प्रोक्तं-मृत-सञ्जीवनी-कवचम् श्रीमहादेव-प्रोक्तं-मृत-सञ्जीवनी-कवचम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीमृतसञ्जीवनीकवचस्य श्री महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवता ॐ बीजं, जूं शक्तिः, सः कीलकम् मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- श्री महादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवतायै नमः हृदि, ॐ बीजाय नमः गुह्ये, जूं शक्तये नमः पादयो, सः कीलकाय नमः नाभौ, मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगाय नमः… Read More महामृत्युञ्जयस्तोत्रम् महामृत्युञ्जयस्तोत्रम् विनियोग- ॐ अस्य श्री महा-मृत्युञ्जय-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयो देवता, गौरी शक्तिः, मम सर्वारिष्ट-समस्त-मृत्यु-अपमृत्यु-शान्त्यर्थं च जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यास- श्रीमार्कण्डेय ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। श्रीमृत्युञ्जयो देवतायै नमः हृदि। गौरी शक्तये नमः नाभौ। मम सर्वारिष्ट-समस्त-मृत्यु-अपमृत्यु-शान्त्यर्थं च जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे। ध्यान- चन्द्रार्काग्नि-विलोचनं स्मित-मुखं पद्म-द्वयान्तः-स्थितम्। मुद्रा-पाश-मृगाक्ष-सूत्र-विलसत्पाणिं हिमांशु-प्रभम् | कोटीन्दु-प्रगलत्सुधाऽऽप्लुत-तनुं हारादि-भूषोज्ज्वलं कान्तं विश्व-विमोहनं पशुपतिं… Read More ameya jaywant narvekar श्री प्रत्यंगिरा स्तोत्र श्री प्रत्यंगिरा स्तोत्र श्री गणेशाय नमः। ॐ नमः प्रत्यंगिरायै।। मन्दरस्थं सुखासीनं, भगवन्तं महेश्वरम्। समुपागम्य चरणौ, पार्वती परिपृच्छति।।१ ।।श्रीदेव्युवाच।। धारणी परमा विद्या, प्रत्यंगिरा महोदया। नर-नारी-हितार्थाय, बालानां रक्षणाय च।।२ राज्ञां मण्डलिकानां च, दीनानां च महेश्वर! महा-भयेषु घोरेषु, विद्युदग्नि-भयेषु च।।३ व्याघ्र-दंष्ट्रि-करी-घाते, नदी-नद-समुद्रके। अभिचारेषु सर्वेषु, युद्धे राज-भयेषु च।।४ सौभाग्य-जननी देव! नृणाम् वश्य-करी सदा। तां विद्यां भो सुरेशेह! कथयस्व मम… Read More विपरीत-प्रत्यंगिरा महा-विद्या zस्तोत्र विपरीत-प्रत्यंगिरा महा-विद्या स्तोत्र बहुत से व्यक्ति प्रेत, यक्ष, राक्षस, दानव, दैत्य, मरी-मसान, शंकिनी, डंकिनी बाधाओं तथा दूसरे के द्वारा या अपने द्वारा किए गए प्रयोगों के फल-स्वरुप पीड़ित रहते हैं। इन सबकी शान्ति हेतु यहाँ भैरव-तन्त्रोक्त ‘विपरीत-प्रत्यंगिरा’ की विधि प्रस्तुत है। पीड़ित व्यक्ति या प्रयोग-कर्ता गेरुवा लंगोट पहन कर एक कच्चा बिल्व-फल अपने तथा एक… Read More निरोग-कारी आदित्य-हृदय निरोग-कारी आदित्य-हृदय ‘आदित्य-हृदय’ का प्रयोग करने की विधि यह है की प्रातः-काल नींद खुलते ही शैय्या पर बैठे-बैठे ही भगवान् सूर्य के बारह नामों का पाठ करे। यथा- आदित्यः प्रथमं नाम, द्वितीयं तु दिवाकरः। तृतीयं भास्करः प्रोक्तं, चतुर्थं च प्रभा-करः।। पञ्चममं च सहस्रांशुः, षष्ठं चैव त्रि-लोचनः। सप्तमं हरिदश्वं च, अष्टमं तु अहर्पतिः।। नवमं दिन-करः प्रोक्तं… Read More संजीवनी-स्तवः संजीवनी-स्तवः अथापरमहं वक्ष्येऽमृत-सञ्जीवनी-स्तवम्, यस्याऽनुष्ठान-मात्रेण मृत्युर्दूरात् पलायते।।१ असाध्याः कष्ट-साध्याश्च महा-रोग-भयंकरा, शीघ्रं नश्यंति पठनात् स्यात् आयुश्च प्रवर्धते।।२ शाकिनी डाकिनी दोषाः कुदृष्टिः ग्रह-शत्रुजा, प्रेत-वेताल-यक्षोत्था बाधा नश्यंति चाखिलाः।।३ दुरितानि समस्तानि नाना-जन्मोद्भवानि च, संसर्गज विकाराणि विलीयन्तेऽस्य पाठतः।।४… Read More गंगा दशहरा स्तोत्र गंगा दशहरा स्तोत्र ॐ नमः शिवायै गंगायै, शिवदायै नमो नमः। नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै, ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते।। नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, शांकर्यै ते नमो नमः। सर्व-देव-स्वरुपिण्यै, नमो भेषज-मूर्त्तये।। सर्वस्य सर्व-व्याधीनां, भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते। स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते।।… Read More
ReplyDeleteनागपत्नीकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रं नागपत्नीकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रं ।।सुरसोवाच।। हे जगत्कान्त कान्तं मे देहि मानं च मानद । पतिः प्राणाधिकः स्त्रीणां नास्ति बन्धुश्च तत्परः ।।१ अयि सुरवरनाथ प्राणनाथं मदीयं न कुरु वधमनन्तप्रेमसिन्धो सुबन्धो । अखिलभुवनबन्धो राधिकाप्रेमसिन्धो पतिमिह कुरु दानं मे धिधातुर्विधातः ।।२ त्रिनयनविधिशेषाः षण्मुखश्चास्यसङ्घैः स्तवनविषयजाड्याः स्तोतुमीशा न वाणी । न खलु निखिलवेदाः स्तोतुमन्येऽपि देवाः स्तवनविषयशक्ताः सन्ति सन्तस्तवैव ।।३… Read More श्रीबालरक्षा श्रीबालरक्षा श्रीगणेशाय नमः । श्रीकृष्णाय नमः । अव्यादजोङघ्रिंमणिमांस्तव जान्वथोरू यज्ञोऽच्युतः कटितटं जठरं हयास्यः । ह्रत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कंठं विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥ १ ॥ चक्रयग्रतः सहगदो हरिरस्तु पश्चात्त्वत्पार्श्वयोर्धनुरसौ मधुहाजनश्च । कोणेषु शंख उरुगाय उपर्युपेन्द्रस्तार्क्ष्यः क्षितौ हलधरः पुरुषः समंतात् ॥ २ ॥… Read More श्रीलक्ष्मीस्तव ॥ श्रीलक्ष्मीस्तव ॥ नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते । शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ १॥ नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि । सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ २॥ सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि । सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ ३॥ सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि । मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ ४॥ आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि । योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ ५॥ स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे… Read More सर्व-सौख्यकारं दत्तात्रेय-स्तोत्रम् सर्व-सौख्यकारं दत्तात्रेय-स्तोत्रम् यस्य नाम श्रुतेः सद्यो मृत्युर्दूरात्पलायते । दुःखवार्ता विलीयेत दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ॥१॥ शोको नंदाय कल्पेत दैन्यं दारिद्रयहेतये । रोगःस्वंगाप्तये सम्यग् दिगंबर नमोऽस्तुते ॥२॥ परयंत्रादिकं किञ्चित् प्रभवेन्नैव सूरिषु ।… Read More कार्तवीर्यार्जुन द्वादश नामस्तॊत्रम् कार्तवीर्यार्जुनॊनाम राजाबाहुसहस्रवान्। तस्यस्मरण मात्रॆण गतम् नष्टम् च लभ्यतॆ॥ कार्तवीर्यह:खलद्वॆशीकृत वीर्यॊसुतॊबली। सहस्र बाहु:शत्रुघ्नॊ रक्तवास धनुर्धर:॥… Read More इन्द्रकृतं परमेश्वर-श्रीकृष्णस्तोत्रं इन्द्रकृतं परमेश्वर-श्रीकृष्णस्तोत्रं इन्द्र उवाच अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरुपं सनातनम् । गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तकम् ।।१ भक्तध्यानाय सेवायै नानारुपधरं वरम् । शुक्लरक्तपीतश्यामं युगानुक्रमणेन च ।।२ शुक्लतेजःस्वरुपं च सत्ये सत्यस्वरुपिणम् । त्रेतायां कुङ्कुमाकारं ज्वलन्तं ब्रह्मतेजसा ।।३… Read More ameya jaywant narvekar गर्भ चण्डी ।। श्री गर्भ चण्डी ।। (गौड मतेन लघुचण्डी पाठक्रमः) तंत्रसाधना के अनुसार बीजाक्षरों का सम्पुट लोम-विलोम लगता है । ।।गर्भकवचम्।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शूलेन पाहिन नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके । घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्या निःस्वनेन च । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। १ ।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः प्राच्यां… Read More गायत्री मन्त्र द्वारा प्राण-वायु का संचार गायत्री मन्त्र द्वारा प्राण-वायु का संचार जिस प्रकार नाग के मस्तिष्क में मणि स्थित रहती है, उसी प्रकार मानव-मस्तिष्क के ललाट में भी विभूतियों से ओत-प्रोत मणि स्थित है । यह मणि प्राण-वायु के विशेष सञ्चार के प्रभाव से समस्त विभूतियों की किरणों से जगमगा उठती है । गायत्री मन्त्र के साथ उसके प्रत्येक अक्षर… Read More दश-महा-विद्या-स्तोत्रम् दश-महा-विद्या-स्तोत्रम् नमस्ते चण्डिके ! चण्डि ! चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि । नमस्ते कालिके ! काल-महा-भय-विनाशिनी ! ।।१ शिवे ! रक्ष जगद्धात्रि ! प्रसीद हरि-वल्लभे ! प्रणमामि जगद्धात्रीं, जगत्-पालन-कारिणीम् ।।२ जगत्-क्षोभ-करीं विद्यां, जगत्-सृष्टि-विधायिनीम् । करालां विकटा घोरां, मुण्ड-माला-विभूषिताम् ।।३… Read More सिद्ध-लक्ष्मी-स्तोत्र सिद्ध-लक्ष्मी-स्तोत्र विनियोग- ॐ अस्य श्रीसिद्ध-लक्ष्मी-स्तोत्र-मन्त्रस्य हिरण्य-गर्भः ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहा-काली-महा-लक्ष्मी-महा-सरस्वती देवताः, श्रीं बीजं, ह्रीं शक्तीः, क्लीं कीलकं, मम सर्व-क्लेश-पीडा-परिहार्थं सर्व-दुःख-दारिद्रय-नाशनार्थं सर्व-कार्य-सिद्धयर्थं च श्रीसिद्ध-लक्ष्मी-स्तोत्र-पाठे विनियोगः।… Read More
ReplyDeleteशनि मृत्युंजय स्तोत्र महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्री महाकाल शनि मृत्युञ्जय स्तोत्र मन्त्रस्य पिप्लाद ऋषिरनुष्टुप्छन्दो महाकाल शनिर्देवता शं बीजं मायसी शक्तिः काल पुरुषायेति कीलकं मम अकाल अपमृत्यु निवारणार्थे पाठे विनियोगः। श्री गणेशाय नमः। ॐ महाकाल शनि मृत्युञ्जायाय नमः। नीलाद्रीशोभाञ्चितदिव्यमूर्तिः खड्गो त्रिदण्डी शरचापहस्तः । शम्भुर्महाकालशनिः पुरारिर्जयत्यशेषासुरनाशकारी ।।१ मेरुपृष्ठे समासीनं सामरस्ये स्थितं शिवम् । प्रणम्य शिरसा गौरी… Read More संसार-मोहक नाम श्रीगणेश-कवचम् संसार-मोहक नाम श्रीगणेश-कवचम् ।।पूर्व-पीठिकाः श्री नारायण उवाच।। विनायकस्य कवचं, सर्वापद्-विनिवारकम्। कथयामि महालक्ष्मी ! सर्व-लोकेषु शान्ति-कृत्।।१ कवचं विभ्रतां मृत्युर्न भिया याति सन्निधिम्। नाऽऽयुर्व्ययो नाशुभं च, ब्रह्माण्डे न पराजयः।।२… Read More विश्वविजय सरस्वती कवच विश्वविजय सरस्वती कवच श्रीब्रह्मवैवर्त-पुराण के प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४ में मुनिवर भगवान् नारायण ने मुनिवर नारदजी को बतलाया कि ‘विप्रेन्द्र ! सरस्वती का कवच विश्व पर विजय प्राप्त कराने वाला है। जगत्स्त्रष्टा ब्रह्मा ने गन्धमादन पर्वत पर भृगु के आग्रह से इसे इन्हें बताया था।’ ॥ ध्यान ॥ सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् । कोटिचन्द्रप्रभाजुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम् ॥ वह्निशुद्धांशुकाधानां… Read More ameya jaywant narvekar सरस्वती महा-स्तोत्र सरस्वती महा-स्तोत्र प्रस्तुत ‘सरस्वती महा-स्तोत्र’ का एक वर्ष तक पाठ करने से मूर्ख व्यक्ति की भी मूर्खता दूर हो जाती है । नित्य-पाठ करने से पाठ-कर्त्ता मेधावी हो जाता है । यह महर्षि याज्ञवल्क्य का अनुभूत प्रयोग है । ॥ याज्ञवल्क्य कृत सकल-कामना-दायक सरस्वती स्तोत्रम् ॥ ॥ याज्ञवल्क्य उवाच ॥ कृपां कुरु जगन्मातर्मामेवं हततेजसम् ।… Read More शनैश्चरं प्रति विष्णुनोपदिष्टं गणेशकवचम् ॥ शनैश्चरं प्रति विष्णुनोपदिष्टं संसार-मोहन-गणेश-कवचम् ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्री गणेश कवच मंत्रस्य, प्रजापतिः ऋषिः, वृहती छन्दः , श्रीगजमुख विनायको देवता, गं बीजं, गीं शक्तिः, गः कीलकम्, धर्मकामार्थमोक्षेषु, श्री गणपति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ विष्णुरुवाच ॥ संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदरः स्वयम् ॥ १ ॥ धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः । सर्वेषां कवचानां… Read More सर्व-यंत्र-मन्त्र-तंत्रोत्कीलन-स्तोत्र सर्व-यंत्र-मन्त्र-तंत्रोत्कीलन-स्तोत्र ।। पार्वत्युवाच ।। देवेश परमानन्द, भक्तानाम भयं प्रद ! आगमाः निगमाश्चैव, बीजं बीजोदयस्तथा ।।१।। समुदायेन बीजानां, मन्त्रो मंत्रस्य संहिता । ऋषिच्छन्दादिकं भेदो, वैदिकं यामलादिकम् ।।२।।
ReplyDeleteरुद्र-यामलोक्त श्रीदुर्गा-पञ्जर-स्तवम् रुद्र-यामलोक्त श्रीदुर्गा-पञ्जर-स्तवम् विनियोगः- अस्य श्रीदुर्गा-पञ्जर-स्तोत्रस्य श्रीमहा-मार्तण्ड-भैरवः ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, श्रीपराऽम्बिका दुर्गा देवता, दुं बीजं, स्वाहा शक्तिः, क्लीं कीलकं, सर्वार्थ-साधने पाठे विनियोगः। ध्यान्- हेम-प्रख्यामिन्दु-खण्डात्त-मौलिं, शंखाभीष्टाभीति-हस्तां त्रिनेत्राम्। हेमाब्जस्थां पीत-वस्त्रां प्रसन्नां, देवीं दुर्गां दिव्य-रुपां नमामि ।।… Read More ब्रह्मास्त्र महा-विद्या श्रीबगला स्तोत्र ब्रह्मास्त्र महा-विद्या श्रीबगला स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्रीब्रह्मास्त्र-महा-विद्या-श्रीबगला-मुखी स्तोत्रस्य श्रीनारद ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-बुद्धिनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं जपे (पाठे) विनियोगः ।… Read More श्री बगला दिग्बंधन रक्षा स्तोत्रम् श्री बगला दिग्बंधन रक्षा स्तोत्रम् ब्रह्मास्त्र प्रवक्ष्यामि बगलां नारदसेविताम् । देवगन्धर्वयक्षादि सेवितपादपंकजाम् ।। त्रैलोक्य-स्तम्भिनी विद्या सर्व-शत्रु-वशंकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरी मारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व-वश्यं कुरु कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।… Read More श्रीबगला अष्टोत्तर-शत-नाम स्तोत्रम् श्रीबगला अष्टोत्तर-शत-नाम स्तोत्रम् इस शतनाम स्तोत्र से देवकृपा प्राप्त होती है तथा अंगरक्षक के समान कार्य करता है ।… ameya jaywant narvekar Read More बगला पञ्जर न्यास स्तोत्र बगला पञ्जर न्यास स्तोत्र (दिग्-रक्षण प्रयोग) बगला पूर्वतो रक्षेद् आग्नेय्यां च गदाधरी । पीताम्बरा दक्षिणे च स्तम्भिनी चैव नैऋते ।। १ ।। जिह्वाकीलिन्यतो रक्षेत् पश्चिमे सर्वदा हि माम् । वायव्ये च मदोन्मत्ता कौवेर्यां च त्रिशूलिनी ।। २ ।।… Read More श्रीविष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् श्रीविष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् नारायण उवाच अथ विष्णुः सभामध्ये सम्पूज्य तं गणेश्वरम् । तुष्टाव परया भक्तया सर्वविघ्नविनाशकम् ।।१ श्रीविष्णुरुवाच ईश त्वां स्तोतुमिच्छामि ब्रह्मज्योतिः सनातनम् । निरुपितुमशक्तोऽहमनुरुपमनीहकम् ।।२ प्रवरं सर्वदेवानां सिद्धानां योगिनां गुरुम् । सर्वस्वरुपं सर्वेशं ज्ञानराशिस्वरुपिणम् ।।३… Read More दत्तात्रेय वज्र कवच ॥श्रीहरि:॥ दत्तात्रेय वज्र कवच ॐ ॥श्रीदत्तात्रेयवज्रकवचम् ॥ श्रीगणेशाय नम: । श्रीदत्तात्रेयाय नम: । ऋषय ऊचु: । कथं संकल्पसिद्धि: स्याद्वेदव्यास कलौ युगे । धर्मार्थकाममोक्षणां साधनं किमुदाह्रतम् ॥ १ ॥ व्यास उवाच ।… Read More श्री त्रिपुर भैरवी कवचम् श्री त्रिपुर भैरवी कवचम् ।। श्रीपार्वत्युवाच ।। देव-देव महा-देव, सर्व-शास्त्र-विशारद ! कृपां कुरु जगन्नाथ ! धर्मज्ञोऽसि महा-मते ! । भैरवी या पुरा प्रोक्ता, विद्या त्रिपुर-पूर्विका । तस्यास्तु कवचं दिव्यं, मह्यं कफय तत्त्वतः । तस्यास्तु वचनं श्रुत्वा, जगाद् जगदीश्वरः । अद्भुतं कवचं देव्या, भैरव्या दिव्य-रुपि वै । ।। ईश्वर उवाच ।।… Read More त्रैलोक्यमंगल श्रीकृष्ण कवचम् त्रैलोक्यमंगल श्रीकृष्ण कवचम् कुञ्चिताधरपुटेन पूरयन् वंशिकाप्रचलदंगुलीततिः । मोहयन्सुरभिवामलोचनाः पातु कोऽपि नवनीरदच्छविः ॥ ॥ गणेशाय नमः ॥ ॥ नारद उवाच ॥ भगवन्सर्वधर्मज्ञ कवचं यत्प्रकाशितम् । त्रैलोक्यमंगलं नाम कृपया कथय प्रभो ॥ १ ॥ ॥ सनत्कुमार उवाच ॥… Read More श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र ।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।। भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम ! पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।। इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं । तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।। तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।। ।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।… Read More
ReplyDeleteश्री वाराही कवचम् श्री वाराही कवचम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवाराही-कवच-मन्त्रस्य श्रीत्रिलोचन-ऋषिः, अनुष्टुप्-छन्दः, श्रीआदि-वाराही-देवता, ग्लैं वीजं, स्वाहा शक्तिः, ऐं कीलकं, अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीत्रिलोचन-ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप्-छन्दसे नमः मुखे, श्रीआदि-वाराही-देवतायै नमः हृदि, ग्लैं वीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः नाभौ, ऐं कीलकाय नमः पादयो, अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।… Read More श्री वाराही मन्त्र प्रयोग श्री वाराही मन्त्र प्रयोग विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवाराही मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, सकल-वशीकरणार्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, सकल-वशीकरणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।… Read More सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र ध्यानः- चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् । नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।। ।। मूल-स्तोत्र ।। ।। श्रीनारायण उवाच ।।… Read More सर्प-भय-विनाशक नागिनी द्वादश नाम स्तोत्र सर्प-भय-विनाशक नागिनी द्वादश नाम स्तोत्र जरत्कारुर्जगद्-गौरी, मनसा सिद्ध-योगिनी । वैष्णवी नाग-भगिनी, शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारु-प्रियाऽऽस्तोक-माता विष-हरेति च । महा-ज्ञान-युता चैव, सा देवी विश्व-पूजिता ।। द्वादशैतानि नामानि, पूजा-काले तु यः पठेत् । तस्य नाग-भयं नास्ति, सर्वत्र विजयी भवेत् ।।… Read More नव-दुर्गा-स्तुति नव-दुर्गा-स्तुति अमर-पति-मुकुट-चुम्बित-चरणाम्बुज-सकल-भुवन-सुख-जननी। जयति जगदीश-वन्दिता सकलामल-निष्कला दुर्गा।।१ विकृत-नख-दशन-भूषण-रुधिर-वसाच्क्षुरित-खड्ग-कृत-हस्ता। जयति नर-मुण्ड-मण्डित-पिशित-सुरासव-रता चण्डी।।२… Read More श्रीपर-देवी-सूक्तम् श्रीपर-देवी-सूक्तम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपर-देवी-सूक्त-माला-मन्त्रस्य मार्कण्डेय-मेधा-ऋषी । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दांसि । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवता । ऐं वीजं । ह्रीं शक्तिः । क्लीं कीलकं । मम-चिन्तित-सकल-मनोरथ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- मार्कण्डेय-मेधा-ऋषिभ्यां नमः शिरसि । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दोभ्यो नमः मुखे । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवतायै नमः हृदि । ऐं वीजाय नमः गुह्ये । ह्रीं शक्तये नमः पादयोः । क्लीं कीलकाय… Read More ameya jaywant narvekar श्रीदुर्गा-कर्पूर-स्तवम् श्रीदुर्गा-कर्पूर-स्तवम् ‘ऐं’ जपन्ति तव देवि ! ये मनुं भक्ति-नम्र-मनुजा विचक्षणाः। गद्य-पद्य-प्रभवः सुविलाशो भासते हि वचसा खलु तेषाम्।।१ ‘ह्रीं-ह्रीमि’त्येव मन्त्रं जपति यदि जनो भक्ति-नम्रो नितान्तम्, तद्-गेहे नैव लक्ष्मीस्त्यजति गिरि-सुते ! ते प्रसादात् कदापि। दासो-भूताश्च सर्वे भगवति ! मनुजाऽधीश्वरास्तस्य को वा, वक्तुं भूयात् समर्थः तव शिव-दयिते ! ह्रीं-मनोर्वै प्रभावम्।।२… Read More भगवती मंगल-चण्डिका भगवती मंगल-चण्डिका ‘चण्डी’ शब्द का प्रयोग ‘दक्षा’ (चतुरा) के अर्थ में होता है और ‘मंगल’ शब्द कल्याण का वाचक है। जो मंगल-कल्याण करने में दक्ष हो, वही “मंगल-चण्डिका” कही जाती है। ‘दुर्गा’ के अर्थ में भी चण्डी शब्द का प्रयोग होता है और मंगल शब्द भूमि-पुत्र मंगल के अर्थ में भी आता है। अतः जो… Read More श्रीदुर्गा-स्तवन श्री अर्जुन-कृत ‘श्रीदुर्गा-स्तवन’ ।। संजय उवाच ।। धार्तराष्ट्र-बलं दृष्ट्वा, युद्धाय समुपस्थितम । अर्जुनस्य हितार्थाय, कृष्णो वचनमब्रवीत् ।। 1 ।। ।। श्रीभगवानुवाच ।। शुचिर्भूत्वा महा-बाहि, संग्रामाभिमुखे स्थितः । पराजयाय शत्रूणां, दुर्गा-स्तोत्रमुदीरय ।। 2 ।।… Read More श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) ।।श्री भैरव उवाच।। अधुना देवि वक्ष्येऽहं कवचं मन्त्रगर्भकम् । दुर्गायाः सारसर्वस्वं कवचेश्वरसञ्ज्ञकम् ।।१ परमार्थप्रदं नित्यं महापातकनाशनम् । योगिप्रियं योगीगम्यं देवानामपि दुर्लभम् ।।२ विना दानेन मन्त्रस्य सिद्धिर्देवि कलौ भवेत् । धारणादस्य देवेशि शिवस्त्रैलोक्यनायकः ।।३… Read More ADD ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteश्री महालक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्रम् || श्री महालक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्रम् || श्रीः पद्मा प्रकृतिः सत्त्वा शान्ता चिच्छक्तिरव्यया | केवला निष्कला शुद्धा व्यापिनी व्योमविग्रहा || १|| व्योमपद्मकृताधारा परा व्योमामृतोद्भवा | निर्व्योमा व्योममध्यस्था पञ्चव्योमपदाश्रिता || २||… Read More श्रीबगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् श्रीबगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।। श्रीनारद उवाच ।। भगवन्, देव-देवेश ! सृष्टि-स्थिति-लयात्मकम् । शतमष्टोत्तरं नाम्नां, बगलाया वदाधुना ।।… Read More ब्रह्मास्त्र महा विद्या श्रीबगला स्तोत्र ब्रह्मास्त्र महा विद्या श्रीबगला स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्रीब्रह्मास्त्र-महा-विद्या-श्रीबगला-मुखी स्तोत्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, ‘ह्ल्रीं’ बीजं, ‘स्वाहा’ शक्तिः, ‘बगला-मुखि’ कीलकं, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-गतीनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं पाठे विनियोगः ।… Read More बगलामुखी कवचम् बगलामुखी कवचम् (रुद्रयामले) ।। श्री भैरवी उवाच ।। श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर । इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ।। १ ।। वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाऽशुभविनाशनम् । शुभदं स्मरणात् पुण्यं त्राहि मां दुःखनाशन ।। २ ।।… Read More श्री ब्रह्मास्त्र बगला वज्र कवचम् श्री ब्रह्मास्त्र बगला वज्र कवचम् ।। श्री ब्रह्मोवाच ।। विश्वेश दक्षिणामूर्ते निगमागमवित् प्रभो । मह्यं पुरा त्वया दत्ता विद्या ब्रह्मास्त्रसंज्ञिता ।। १ तस्य मे कवचं बूहि येनाहं सिद्धिमाप्नुयात् । भवामि वज्रकवचं ब्रह्मास्त्रन्यासमात्रतः ।। २… Read More बगलामुखी ब्रह्मास्त्र कवचम् बगलामुखी ब्रह्मास्त्र कवचम् इस कवच में प्रयुक्त मंत्र के जप एवं सम्पुटित दुर्गा पाठ कराने पर शत्रुनाश, प्रेतदोषशमन, आर्थिक उन्नति आदि के सफल प्रयोग किये जा सकते हैं । षट्त्रिंशतात्मक (३६ अक्षर) मंत्र के विकल्प में इस मंत्र में मंत्रोच्चारण या ध्यान समय त्रुटि की सम्भावना भी नहीं रहती है ।… Read More श्री बगला यंत्रराज रक्षा स्तोत्रम् श्री बगला यंत्रराज रक्षा स्तोत्रम् इस स्तोत्र में बगला मंत्र ऋषि नारद, छंद पंक्ति, देवता पीताम्बरा, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्ति, सं कीलक, शत्रु-विनाशक विनियोग कहा गया है तथा इस स्तोत्र के पाठ से यंत्रार्चन का फल प्राप्त होता है ।… Read More श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम् श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम् ।। श्री शिव उवाच ।। अधुनाऽहं प्रवक्ष्यामि बगलायाः सुदुर्लभम् । यस्य पठन मात्रेण पवनोपि स्थिरायते ।। प्रत्यंगिरां तां ameya jaywant narvekar देवेशि श्रृणुष्व कमलानने । यस्य स्मरण मात्रेण शत्रवो विलयं गताः ।।… Read More श्रीबगला पञ्जर स्तोत्र श्रीबगला पञ्जर स्तोत्र (यह स्तोत्र शेवागम-सारोक्त है । इसी स्तोत्र के उपयोग से मथुरा (उ॰प्र॰) के प्रख्यात स्व॰ विष्णु भट्ट अथर्ववेदी ने विपुल यशार्जन किया था) इस स्तोत्र के सहस्र (एक हजार) पाठ सिद्धि-प्राप्ति के लिए पहले करने चाहिए । फिर सौ पाठ अनुष्ठान कार्य-सिद्धि के लिए करना चाहिए । नित्य कर्म करके स्व-शरीर-रक्षार्थ इस… Read More श्रीबगलामुखी हृदय स्तोत्रम् श्रीबगलामुखी हृदय स्तोत्रम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगला-मुखी हृदयमालामन्त्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, ‘ह्लीं’ बीजं, ‘क्लीं’ शक्तिः, ‘ऐं’ कीलकं, श्रीबगला-मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीनारद ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्री बगला-मुखी देवतायै नमः हृदि, ‘ह्लीं’ बीजाय नमः गुह्ये, ‘क्लीं’ शक्त्यै नमः नाभौ, ‘ऐं’ कीलकाय नमः पादयोः, श्रीबगला-मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थे जपे… Read More
ReplyDeleteशरभहृदय स्तोत्रम् ॥ शरभहृदय स्तोत्रम् ॥ किसी भी देवता का हृदय मित्र के समान कार्य करता है, शतनाम अंगरक्षक के समान एवं सहस्रनाम सेना के समान रखा करता है अत: इनका अलग-अलग महत्व है । भूमिका के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय विष्णु ने शरभ हृदय की २१ आवृति ३ मास तक की तब शरभराज प्रकट ने… Read More प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ ॥ ॐ नमः श्री कालसंकर्षिण्यै ॥ ॥ भगवान शिव उवाच ॥ एँ ख्फ्रें नमोऽस्तु ते महामाये देहातीते निरञ्जने । प्रत्यंगिरा जगद्धात्रि राजलक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥ वर्ण देहा महागौरी साधकेच्छा प्रवर्तते । पददेहामहास्फार परासिद्धि समुत्थिता ॥ तत्त्वदेहास्थिता देवि साधकान् ग्रहा स्मृता । महाकुण्डलिनी प्रोक्ता सहस्रदलस्य च भेदिनी ॥… Read More कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ Pratyangira Mala Mantra ॥ ॐ नमः शिवाये ॥ ॥ श्री भैरव उवाच ॥ ” निवसति करवीरे सर्वदाया श्मशाने विनत-जन हिताय प्रेत-रूढे महेशो हि मकर हिम-शुभ्रां पञ्च-वक्त्राम्-माद्यांदिशतु-दश-भुजाया सा श्रियं सिद्धि-लक्ष्मीः ॥ ऐं ख्फ्रे जय जय जगदम्ब प्रणत-हरिहर हिरण्य-गर्भ ।… Read More ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ इस स्तव में श्लोक ४, ५, ८, १०, ११, २५, २६ में अन्य मंत्रों के प्रयोग हैं। विनियोगः- “ॐ अस्य श्री गायत्री स्तवराज मन्त्रस्य श्रीविश्वामित्रः ऋषिः सकल जननी चतुष्पदा गायत्री परमात्मा देवता। सर्वोत्कृष्टं परम धाम तत्-सवितुर्वरेण्यं बीजं भर्गो देवस्य धीमहि शक्तिः। धियो यो नः प्रचोदयात् कीलकं। ॐ भूः ॐ भुव ॐ… Read More श्रीगायत्री सहस्रनामस्तोत्रम् एवं नामावली श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम् श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्रीगायत्री अष्टोत्तर सहस्रनाम स्तोत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीदेवी गायत्री देवता हलो बीजानि स्वराः शक्त्यः सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- श्रीब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । श्रीदेवी गायत्र्यै नमः हृदि । हल्भ्यो बीजेभ्यो नमः गुह्ये । स्वरेभ्यः शक्तिभ्यः नमः पादयोः ।… Read More ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ नमस्कृत्य भगवान् याज्ञवल्क्यः स्वयं परिपृच्छति- त्वं ब्रूहि भगवन् ! गायत्र्या उत्पत्तिं श्रोतुमिच्छामि ॥ १ ॥ ब्रह्मोवाच – प्रणवेन व्याहृतयः प्रवर्तन्ते । तमसस्तु परं ज्योतिः कः पुरुषः स्वयम्भूर्विष्णुरिति हताः स्वाङ्गुल्याः मथयेत् पाठान्तर – … ameya jaywant narvekar Read More ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ अथ श्रीमद्देवीभागवते महापुराणे गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ नारद उवाच ॥ भगवन् देवदेवेश भूतभव्य जगत्प्रभो । कवचं च श्रृतं दिव्यं गायत्रीमन्त्रविग्रहम् ॥ १ ॥ अधुना श्रोतुमिच्छामि गायत्रीहृदयं परम् । यद्धारणाद्भवेत्पुण्यं गायत्रीजपतोऽखिलम् ॥ २ ॥ ॥ श्रीनारायण उवाच ॥ देव्याश्च हृदयं प्रोक्तं नारदाथर्वणे स्फुटम् । तदेवाहं प्रवक्ष्यामि रहस्यातिरहस्यकम् ॥ ३ ॥ विराड्रूपां महादेवीं गायत्रीं… Read More ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्र (Gayatri Panjara Stotram) को नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है गायत्री पञ्जर स्तोत्र पढ़ने से साधना में सफ़लता, अपने शरीर की रक्षा कवच का कार्य करता हैं ! पीपल की छाया (पीपल मूल) में जप करने से राजा का वशीकरण, बिल्व मूल… Read More कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) ।। ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है। तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनी-हदय-दीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्… Read More मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ देव देव महादेव! संसारार्णव तारक ! गायत्री कवचं देव ! कृपया कथय प्रभो । ॥ महादेव उवाच ॥ मूलाधारेषु या नित्या कुण्डली तत्त्व-रूपिणी । सूक्ष्माति सूक्ष्मा परमा विसतन्तु-स्वरूपिणी ॥ विद्युत-पुञ्ज-प्रतीकाशा कुण्डलाकृति-रूपिणी । परम-ब्रह्म गृहिणी पञ्चाशद् वर्ण-रूपिणी ॥ शिवस्य नर्तकी नित्या परम् ब्रह्म-पूजिता । ब्रह्मणः सैव गायत्री सच्चिदानन्दरूपिणी ॥ तद् भ्रमावर्त्तवातोऽयं… Read More
ReplyDeleteश्रीराधाकवचस्तोत्रम् ब्रह्मयामले ॥ श्रीराधाकवचस्तोत्रम् ॥ ॥ श्रीपार्वत्युवाच ॥ ॐ देवदेव महादेव परमप्रीतिदायक । राधायाः कवचं देव कथय प्राणवल्लभ ॥ १ ॥ ॥ श्रीमहादेवौवाच ॥ साधु साधु महादेवि भद्रं भद्रं सुमङ्गलम् । प्रेमभावान्वितायाश्च राधायाः कवचं परम् ॥ २ ॥ श्यामप्रेमविलासन्या गोपिन्या प्रेमसागरे । मग्नायाः कवचं देवि कथयामि शृणुष्व तत् ॥ ३ ॥ ऋषिर्नारायणः प्रोक्तो गायत्री छन्द इत्यपि ।… Read More सरस्वतीस्तोत्रं अथवा वाणीस्तवनं याज्ञवल्क्योक्त ॥ सरस्वतीस्तोत्रं अथवा वाणीस्तवनं याज्ञ्यवल्क्योक्त ॥ ॥ नारायण उवाच ॥ वाग्देवतायाः स्तवनं श्रूयतां सर्वकामदम् । महामुनिर्याज्ञवल्क्यो येन तुष्टाव तां पुरा ॥ १ ॥ गुरुशापाच्च स मुनिर्हतविद्यो बभूव ह । तदाऽऽजगाम दुःखार्तो रविस्थानं च पुण्यदम् ॥ २ ॥ सम्प्राप्य तपसा सूर्यं कोणार्के दृष्टिगोचरे । तुष्टाव सूर्य्यं शोकेन रुरोद स पुनः पुनः ॥ ३ ॥ सूर्य्यस्तं पाठयामास… Read More वृन्दावन-महिमा ॥ वृन्दावन-महिमा ॥ वृन्दाटवी सहजवीतसमस्तदोषा दोषाकरानपि गुणाकरतां नयन्ती । पोषाय मे सकलधर्मबहिष्कृतस्य शोषाय दुस्तरमहाघचयस्य भूयात् ॥ वृन्दाटवी बहुभवीयसुपुण्यपुञ्जान्नेत्रातिथीभवति यस्य महामहिम्नः । तस्येश्वरः सकलकर्म मृषा करोति ब्रह्मादयस्तमतिभक्तियुता नमन्ति ॥… Read More युगलसरकार-प्रार्थना ॥ युगलसरकार-प्रार्थना ॥ सारसागरानाथौ पुत्रमित्रगृहाकुलात् । गोप्तारौ मे युवामेव प्रपन्नभयभञ्जनौ ॥ योऽहं ममास्ति यत्किञ्चिदिह लोके परत्र च । तत् सर्वं भवतोरद्य चरणेषु समर्पितम् ॥ अहमस्म्यपराधानामालयस्त्यक्तसाधनः । अगतिश्च ततो नाथौ भवन्तावेव मे गतिः ॥… Read More ब्रह्मणा कृतं श्रीराधास्तोत्रम् ॥ ब्रह्मणा कृतं श्रीराधास्तोत्रम् ॥ ॥ ब्रह्मोवाच ॥ हे मातस्त्वत्पदाम्भोजं दृष्टं कृष्णप्रसादतः ॥ १ ॥ सुदुर्लभं च सर्वेषां भारते च विशेषतः । षष्टिवर्षसहस्राणि तपस्तप्तं पुरा मया ॥ २ ॥ भास्करे पुष्करे तिर्थे कृष्णस्य परमात्मनः । आजगाम वरं दातुं वरदाता हरिः स्वयम् ॥ ३ ॥ वरंवृणीष्वेत्युक्ते च स्वाभिष्टं च वृतं मुदा । राधिकाचरणाम्भोजं सर्वेषामपि दुर्लभम् ॥… Read More श्रीराधास्तोत्रं उद्धवकृतम् ॥ श्रीराधास्तोत्रं उद्धवकृतम् ॥ ॥ अथ उद्धवकृतं श्रीराधास्तोत्रम्॥ ॥ उद्धव उवाच ॥ वन्दे राधापदाम्भोजं ब्रह्मादिसुरवन्दितम् । यत्कीर्तिकीर्तनेनैव पुनाति भुवनत्रयम् ॥ १ ॥ नमो गोकुलवासिन्यै राधिकायै नमो नमः । शतशृङ्गनिवासिन्यै चन्द्रावत्यै नमो नमः ॥ २ ॥ तुलसीवनवासिन्यै वृन्दारण्यै नमो नमः । रासमण्डलवासिन्यै रासेश्वर्यै नमो नमः ॥ ३ ॥ विरजातीरवासिन्यै वृन्दायै च नमो नमः । वृन्दावनविलासिन्यै कृष्णायै… Read More श्रीराधास्तवनम् गणेशकृतम् ॥ श्रीराधास्तवनम् गणेशकृतम् ॥ ॥ श्रीगणेश उवाच ॥ तव पूजा जगन्मातर्लोकशिक्षाकरी शुभे। ब्रह्मस्वरूपा भवती कृष्णवक्षःस्थलस्थिता ॥ १ ॥ यत्पादपद्ममतुतलं ध्यायन्ते ते सुदुर्लभम् । सुरा ब्रह्मेशशेषाद्या मुनीन्द्राः सनकादयः ॥ २ ॥ जिवन्मुक्ताश्च भक्ताश्च सिद्धेन्द्राः कपिलादयः । तस्य प्राणाधिदेवि त्वं प्रिया प्राणाधिका परा ॥ ३ ॥… Read More श्रीनारायणकृतं राधाषोडशनामवर्णनम् ॥ श्रीनारायणकृतं राधाषोडशनामवर्णनम् ॥ ॥ श्रीनारायण उवाच ॥ राधा रासेश्वरी रासवासिनी रसिकेश्वरी । कृष्णप्राणाधिका कृष्णप्रिया कृष्णस्वरूपिणी ॥ १ ॥ कृष्णवामाङ्गसम्भूता परमान्दरूपिणी । कृष्णा वृन्दावनी वृन्दा वृन्दावनविनोदिनी ॥ २ ॥ चन्द्रावली चन्द्रकान्ता शतचन्द्रप्रभानना । नामान्येतानि साराणि तेषामभ्यन्तराणि च ॥ ३ ॥… Read More ameya jaywant narvekar श्रीराधाप्रार्थना उद्धवकृता ॥ श्रीराधाप्रार्थना उद्धवकृता ॥ ॥ उद्धव उवाच ॥ चेतनं कुरु कल्याणि जगन्मातर्नमोऽस्तु ते । त्वमेव प्राक्तनं सर्वं कृष्णं द्रक्ष्यसि साम्प्रतम् ॥ १ ॥ त्वत्तो विश्वं पवित्रं च त्वत्पादरजसा मही । सुपवित्रं त्वद्वदनं पुण्यवत्यश्च गोपिकाः ॥ २ ॥… Read More श्रीराधास्तोत्रं ब्रह्मेशशेषादिकृतम् ॥ श्रीराधास्तोत्रं ब्रह्मेशशेषादिकृतम् ॥ ॥ अथ ब्रह्मेशशेषादिकृतम् श्रीराधास्तोत्रम् ॥ ॥ ब्राह्मोवाच ॥ षष्टिवर्षसहस्राणि दिव्यानि परमेश्वरि । पुष्करे च तपस्तप्तं पुण्यक्षेत्रे च भारते ॥ १ ॥ त्वत्पादपद्ममधुरमधुलुब्धेन चेतसा । मधुव्रतेन लोभेन प्रेरितेन मया सति ॥ २ ॥ तथापि न मया लब्धं त्वद्पादपदमीप्सितम् । न दृष्टमपि स्वप्नेऽपि जाता वागशरीरिणी ॥ ३ ॥… Read More
ReplyDeleteश्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रम् ॥ श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रम् ॥ ॥ देव्युवाच ॥ त्वत्तः श्रुतं मया नाथ देव देव जगत्पते । देव्याः कामकलाकाल्या विधानं सिद्धिदायकम् ॥ १ ॥ त्रैलोक्यविजयस्यापि विशेषेण श्रुतो मया । तत्प्रसङ्गेन चान्यासां मन्त्रध्याने तथा श्रुते ॥ २ ॥ इदानीं जायते नाथ शुश्रुषा मम भूयसी । नाम्नां सहस्रे त्रिविधमहापापौघहारिणि ॥ ३ ॥ श्रुतेन येन देवेश धन्या स्यां भाग्यवत्यपि ।… Read More “ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा” श्रीराधा-उपासना – देवी भागवत अनुसार ॥ ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा ॥ श्रीराधा-उपासना – देवी भागवत अनुसार भगवान् नारायण कहते हैं — नारद ! सुनो, यह वेदवर्णित रहस्य तुम्हें बताता हूँ । यह सर्वोत्तम एवं परात्पर साररहस्य जिस किसी के सम्मुख नहीं कहना चाहिये । इस रहस्य को सुनकर दूसरों से कहना उचित नहीं है; क्योंकि यह अत्यन्त गुह्य रहस्य है ।… Read More गुह्यकाली संजीवन स्तोत्रम् ॥ अथ गुह्यकाली संजीवन स्तोत्रम् ॥ इस स्तोत्र को पढ़े बिना गुह्यकाली सहस्रनाम पठन का पूरा फल नहीं मिलता । अत: इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें । ॥ महाकाल उवाच ॥ इदं स्तोत्रं पुरा देव्या त्रिपुरघ्नाय कीर्तितम् । त्रिपुरघ्नोऽपि मां प्रादादुपदिश्य मनुं प्रिये ॥ १ ॥ गद्याकारं च स विभुः स्तोत्रं तस्यै चकार ह… Read More गुह्यकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥ अथ गुह्यकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥ ॥ पूर्वपीठिका ॥ ॥ देव्युवाच ॥ यदुक्तं भवता पूर्वं प्राणेश करुणावशात् ॥ १ ॥ नाम्नां सहस्रं देव्यास्तु तदिदानीं वदप्रभो । ॥ श्री महाकालोवाच ॥ अतिप्रीतोऽस्मि देवेशि तवाहं वचसामुना ॥ २ ॥ सहस्रनामस्तोत्रं यत् सर्वेषामुत्तमोत्तमम् । सुगोपितं यद्यपि स्यात् कथयिष्ये तथापि ते ॥ ३ ॥ देव्याः सहस्रनामाख्यं स्तोत्रं पापौघमर्दनम् ।… Read More गोपिका विरह गीत ॥ गोपिका विरह गीत ॥ एहि मुरारे कुजविहारे एहि प्रणतजनबन्धो । हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणासिन्धो । (ध्रुवपदम्) रासनिकुञ्जे गुञ्जति नियतं भ्रमरशतं किल कान्त । एहि निभृतपथपान्थ । त्वामिह याचे दर्शनदानं हे मधुसूदन शान्त ॥ १ ॥… Read More श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीरूपगोस्वामीजी द्वारा रचित श्रीयुगलकिशोराष्टक श्री रूप गोस्वामी (१४९३ – ameya jaywant narvekar १५६४), वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः षण्गोस्वामी में से एक थे। वे कवि, गुरु और दार्शनिक थे। वे सनातन गोस्वामी के भाई थे। इनका जन्म १४९३ ई (तदनुसार १४१५ शक.सं.) को हुआ था। इन्होंने २२ वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम… Read More राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ प्रातः स्मरामि युगकेलिरसाभिषिक्तं वृन्दावनं सुरमणीयमुदारवृक्षम् । सौरीप्रवाहवृतमात्मगुणप्रकाशं ADD ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteशरभहृदय स्तोत्रम् ॥ शरभहृदय स्तोत्रम् ameya jaywant narvekar ॥ किसी भी देवता का हृदय मित्र के समान कार्य करता है, शतनाम अंगरक्षक के समान एवं सहस्रनाम सेना के समान रखा करता है अत: इनका अलग-अलग महत्व है । भूमिका के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय विष्णु ने शरभ हृदय की २१ आवृति ३ मास तक की तब शरभराज ameya jaywant narvekar प्रकट ने… Read More प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ ॥ ॐ नमः श्री कालसंकर्षिण्यै ॥ ॥ भगवान शिव उवाच ॥ एँ ख्फ्रें नमोऽस्तु ते महामाये देहातीते निरञ्जने । प्रत्यंगिरा जगद्धात्रि राजलक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥ वर्ण देहा महागौरी साधकेच्छा प्रवर्तते । पददेहामहास्फार परासिद्धि समुत्थिता ॥ तत्त्वदेहास्थिता देवि साधकान् ग्रहा स्मृता । महाकुण्डलिनी प्रोक्ता सहस्रदलस्य च भेदिनी ॥… Read More कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ Pratyangira Mala Mantra ॥ ॐ नमः शिवाये ॥ ॥ श्री भैरव उवाच ॥ ” निवसति करवीरे सर्वदाया श्मशाने विनत-जन हिताय प्रेत-रूढे महेशो हि मकर हिम-शुभ्रां पञ्च-वक्त्राम्-माद्यांदिशतु-दश-भुजाया सा श्रियं सिद्धि-लक्ष्मीः ॥ ऐं ख्फ्रे जय जय जगदम्ब प्रणत-हरिहर हिरण्य-गर्भ ।… Read More ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ इस स्तव में श्लोक ४, ५, ८, १०, ११, २५, २६ में अन्य मंत्रों के प्रयोग हैं। विनियोगः- “ॐ अस्य श्री गायत्री स्तवराज मन्त्रस्य श्रीविश्वामित्रः ऋषिः सकल जननी चतुष्पदा गायत्री परमात्मा देवता। सर्वोत्कृष्टं परम धाम तत्-सवितुर्वरेण्यं बीजं भर्गो देवस्य धीमहि शक्तिः। धियो यो नः प्रचोदयात् कीलकं। ॐ भूः ॐ भुव ॐ… Read More श्रीगायत्री सहस्रनामस्तोत्रम् एवं नामावली श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम् श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्रीगायत्री अष्टोत्तर सहस्रनाम स्तोत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीदेवी गायत्री देवता हलो बीजानि स्वराः शक्त्यः सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- श्रीब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । श्रीदेवी गायत्र्यै नमः हृदि । हल्भ्यो बीजेभ्यो नमः गुह्ये । स्वरेभ्यः शक्तिभ्यः नमः पादयोः ।… Read More ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ नमस्कृत्य भगवान् याज्ञवल्क्यः स्वयं परिपृच्छति- त्वं ब्रूहि भगवन् ! गायत्र्या उत्पत्तिं श्रोतुमिच्छामि ॥ १ ॥ ब्रह्मोवाच – प्रणवेन व्याहृतयः प्रवर्तन्ते । तमसस्तु परं ज्योतिः कः पुरुषः स्वयम्भूर्विष्णुरिति हताः स्वाङ्गुल्याः मथयेत् पाठान्तर – … ameya jaywant narvekar Read More ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ अथ श्रीमद्देवीभागवते महापुराणे गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ नारद उवाच ॥ भगवन् देवदेवेश भूतभव्य जगत्प्रभो । कवचं च श्रृतं दिव्यं गायत्रीमन्त्रविग्रहम् ॥ १ ॥ अधुना श्रोतुमिच्छामि गायत्रीहृदयं परम् । यद्धारणाद्भवेत्पुण्यं गायत्रीजपतोऽखिलम् ॥ २ ॥ ॥ श्रीनारायण उवाच ॥ देव्याश्च हृदयं प्रोक्तं नारदाथर्वणे स्फुटम् । तदेवाहं प्रवक्ष्यामि रहस्यातिरहस्यकम् ॥ ३ ॥ विराड्रूपां महादेवीं गायत्रीं… Read More ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्र (Gayatri Panjara Stotram) को नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है गायत्री पञ्जर स्तोत्र पढ़ने से साधना में सफ़लता, अपने शरीर की रक्षा कवच का कार्य करता हैं ! पीपल की छाया (पीपल मूल) में जप करने से राजा का वशीकरण, बिल्व मूल… Read More कालभैरव ameya jaywant narvekar ( कालभैरवाष्टमी ) कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) ।। ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है। तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनी-हदय-दीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्… Read More मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ देव देव महादेव! संसारार्णव तारक ! गायत्री कवचं देव ! कृपया कथय प्रभो । ॥ महादेव उवाच ॥ मूलाधारेषु या नित्या कुण्डली तत्त्व-रूपिणी । सूक्ष्माति सूक्ष्मा परमा विसतन्तु-स्वरूपिणी ॥ विद्युत-पुञ्ज-प्रतीकाशा कुण्डलाकृति-रूपिणी । परम-ब्रह्म गृहिणी पञ्चाशद् वर्ण-रूपिणी ॥ शिवस्य नर्तकी नित्या परम् ब्रह्म-पूजिता । ब्रह्मणः सैव गायत्री सच्चिदानन्दरूपिणी ॥ तद् भ्रमावर्त्तवातोऽयं… Read More ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteमहाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १५ - ameya jaywant narvekar कामकलाकाल्याः प्राणायुताक्षरी मन्त्रः
ReplyDeleteओं ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं हूं छूीं स्त्रीं फ्रें क्रों क्षौं आं स्फों स्वाहा कामकलाकालि, ह्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं ठः ठः दक्षिणकालिके, ऐं क्रीं ह्रीं हूं स्त्री फ्रे स्त्रीं ख भद्रकालि हूं हूं फट् फट् नमः स्वाहा भद्रकालि ओं ह्रीं ह्रीं हूं हूं भगवति श्मशानकालि नरकङ्कालमालाधारिणि ह्रीं क्रीं कुणपभोजिनि फ्रें फ्रें स्वाहा श्मशानकालि क्रीं हूं ह्रीं स्त्रीं श्रीं क्लीं फट् स्वाहा कालकालि, ओं फ्रें सिद्धिकरालि ह्रीं ह्रीं हूं स्त्रीं फ्रें नमः स्वाहा गुह्यकालि, ओं ओं हूं ह्रीं फ्रें छ्रीं स्त्रीं श्रीं क्रों नमो धनकाल्यै विकरालरूपिणि धनं देहि देहि दापय दापय क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षं क्षं क्षं क्षं क्ष्लं क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्रों क्रोः आं ह्रीं ह्रीं हूं हूं नमो नमः फट् स्वाहा धनकालिके, ओं ऐं क्लीं ह्रीं हूं सिद्धिकाल्यै नमः सिद्धिकालि, ह्रीं चण्डाट्टहासनि जगद्ग्रसनकारिणि नरमुण्डमालिनि चण्डकालिके क्लीं श्रीं हूं फ्रें स्त्रीं छ्रीं फट् फट् स्वाहा चण्डकालिके नमः कमलवासिन्यै स्वाहालक्ष्मि ओं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मि, ह्रीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा अन्नपूर्णे, ओं ह्रीं हूं उत्तिष्ठपुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा क्रोधदुर्गे भगवति शमय स्वाहा हूं ह्रीं ओं, वनदुर्गे ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतरतनुरूपे चट चट प्रचट प्रचट कह कह रम रम बन्ध बन्ध घातय घातय हूं फट् विजयाघोरे, ह्रीं पद्मावति स्वाहा पद्मावति, महिषमर्दिनि स्वाहा महिषमर्दिनि, ओं दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा जयदुर्गे, ओं ह्रीं दुं दुर्गायै स्वाहा, ऐं ह्रीं श्रीं ओं नमो भगवत मातङ्गेश्वरि सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि सर्वदुष्टमृगवशङ्करि सर्वग्रहवशङ्करि सर्वसत्त्ववशङ्कर सर्वजनमनोहरि सर्वमुखरञ्जिनि सर्वराजवशङ्करि ameya jaywant narvekar सर्वलोकममुं मे वशमानय स्वाहा, राजमातङ्ग उच्छिष्टमातङ्गिनि हूं ह्रीं ओं क्लीं स्वाहा उच्छिष्टमातङ्गि, उच्छिष्टचाण्डालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः उच्छिष्टचाण्डालिनि, ओं ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां मुखं वाचं स्त म्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्रीं ओं स्वाहा बगले, ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं धनलक्ष्मि ओं ह्रीं ऐं ह्रीं ओं सरस्वत्यै नमः सरस्वति, आ ह्रीं हूं भुवनेश्वरि, ओं ह्रीं श्रीं हूं क्लीं आं अश्वारूढायै फट् फट् स्वाहा अश्वारूढे, ओं ऐं ह्रीं नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ऐं ह्रीं स्वाहा नित्यक्लिन्ने । स्त्रीं क्षमकलह्रहसयूं.... (बालाकूट)... (बगलाकूट )... ( त्वरिताकूट) जय भैरवि श्रीं ह्रीं ऐं ब्लूं ग्लौः अं आं इं राजदेवि राजलक्ष्मि ग्लं ग्लां ग्लिं ग्लीं ग्लुं ग्लूं ग्लं ग्लं ग्लू ग्लें ग्लैं ग्लों ग्लौं ग्ल: क्लीं श्रीं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं पौं राजराजेश्वरि ज्वल ज्वल शूलिनि दुष्टग्रहं ग्रस स्वाहा शूलिनि, ह्रीं महाचण्डयोगेश्वरि श्रीं श्रीं श्रीं फट् फट् फट् फट् फट् जय महाचण्ड- योगेश्वरि, श्रीं ह्रीं क्लीं प्लूं ऐं ह्रीं क्लीं पौं क्षीं क्लीं सिद्धिलक्ष्म्यै नमः क्लीं पौं ह्रीं ऐं राज्यसिद्धिलक्ष्मि ओं क्रः हूं आं क्रों स्त्रीं हूं क्षौं ह्रां फट्... ( त्वरिताकूट )... (नक्षत्र- कूट )... सकहलमक्षखवूं ... ( ग्रहकूट )... म्लकहक्षरस्त्री... (काम्यकूट)... यम्लवी... (पार्श्वकूट)... (कामकूट)... ग्लक्षकमहव्यऊं हहव्यकऊं मफ़लहलहखफूं म्लव्य्रवऊं.... (शङ्खकूट )... म्लक्षकसहहूं क्षम्लब्रसहस्हक्षक्लस्त्रीं रक्षलहमसहकब्रूं... (मत्स्यकूट ).... (त्रिशूलकूट)... झसखग्रमऊ हृक्ष्मली ह्रीं ह्रीं हूं क्लीं स्त्रीं ऐं क्रौं छ्री फ्रें क्रीं ग्लक्षक- महव्यऊ हूं अघोरे सिद्धिं मे देहि दापय स्वाअघोरे, ओं नमश्चा ameya jaywant narvekar